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काव्यरंगोली आज का सम्मानित कलमकार बसंत कुमार शर्मा, IRTS

 काव्य रंगोली पेज हेतु

संक्षिप्त परिचय 


नाम - बसंत कुमार शर्मा, IRTS 


पिता - स्व0 श्री दौलत राम शर्मा 

माता - स्व0 श्रीमती कमला प्रसाद शर्मा  

शिक्षा - एम. कॉम 

संप्रति -उप मुख्य सतर्कता अधिकारी, 

पश्चिम मध्य रेल, जबलपुर  


लेखन विधाएँ - गीत, नवगीत, दोहा, छंद, ग़ज़ल, व्यंग्य, लघुकथा, संस्मरण आदि 


संपर्क- 


बसंत कुमार शर्मा,

354, रेल्वे डुप्लेक्स,

फेथ वैली स्कूल के सामने, 

पचपेढ़ी, साउथ सिविल लाइन्स,

जबलपुर (म.प्र.)

पिनकोड- 482001


मोबाइल : 9479356702


ईमेल : basant5366@gmail.com


प्रकाशन - विभिन्न साझा संकलनों एवं पत्र/पत्रिकाओं में दोहा, गीत, नवगीत, ग़ज़ल, व्यंग्य, लघुकथा आदि का सतत प्रकाशन 


पुस्तक प्रकाशन -

(1) बुधिया लेता टोह - गीत-नवगीत संग्रह - वर्ष 2019 - काव्या प्रकाशन, दिल्ली

(2) शाम हँसी पुरवाई में - ग़ज़ल संग्रह - वर्ष 2020  - ब्लू रोज पब्लिशर्स, नई दिल्ली 


गीत  (१)

हुई नगर की जीत 

 

आज गाँव 

फिर हार गया है,

हुई नगर की जीत 

मचल रहा है 

मेरे मन में,

एक और नवगीत 

 

हरिया के 

खेतों में कारें,

सरपट रेस लगातीं 

सुबह शाम 

खूँटे पर गायें, 

भूखीं रोज रँभातीं 

 

मुनिया को 

टूटे छप्पर में,

सता रहा है शीत 

 

खुला नया 

जनपद का ऑफिस,

छत पर 

सोलर पैनल 

डिस्क लगाकर 

देखें साहब,

टी वी पर हर चैनल 

 

खोज रहे 

मादक नर्तन में, जनसेवा की रीत 

कुल्हड़; पत्तल; 

दोने सब पर,

हुआ प्लास्टिक भारी 

आम पलाश 

नीम पीपल को,

श्वासों की दुश्वारी 

 

हरी भरी तुलसी आँगन की  

रहती है भयभीत 

 

करे आजकल 

नंदनवन में,

जिप्सी रोज सफारी 

कालिंदी के 

तट को लगते

हैं कदंब अब भारी 

 

कहाँ राधिका, कृष्ण, गोपियाँ 

कहाँ सरस नवनीत 


 

गीत (२)

ढँग से जी लो 

वर्तमान को,

सबके सँग मिलजुल 

किसे पता 

जीवन की बत्ती,

कब हो जाये गुल

 

कोयल की

मीठी बोली 

सँग,

गीत प्रीत के गाओ 

सागर से गहरे  

नयनों में,

सपने नए सजाओ 

 

देखो वहाँ डाल पर बैठी,

क्या सोचे बुलबुल

 

तोरण बाँधो 

दरवाजे पर

खुशियाँ आएँगी 

कोमल अधरों 

पर मुस्कानें 

खिल-खिल जाएँगी 

 

इधर-उधर की 

गलत बात तो सोचो मत बिलकुल 

 

हिंसा, नफरत 

छोड़-छाड़ कर,

बन जाओ गौतम

अक्षर-अक्षर 

हो अनुरागी,

अधर गीत-सरगम 

 

सारी दुनिया 

गले लगाने 

हो जाये आकुल 

 

 

गीत (३)

तोता-मैना 

गौरैया का,

आँगन ठाँव भुला बैठे.

बरगद, पीपल, 

आम, नीम की, 

शीतल छाँव भुला बैठे.

 

भूले कच्ची 

दीवारों के, 

हम रिश्ते पक्के.

आज वही 

रिश्ते खाते हैं,

सडकों पर धक्के.

 

क्यों शहरों की 

चकाचौंध में, 

अपना गाँव भुला बैठे.

 

प्यार मुहब्बत 

की अमराई,

नदिया नाव-खिवैया. 

भूले सखियाँ 

सखा अनोखे, 

पोखर ताल-तलैया. 

 

उलटे-पुलटे 

याद हो गए,

सीधे दाँव भुला बैठे.  

 

कंगन, बिंदिया, 

हरी चूड़ियाँ,

आँखों का कजरा.

हार मोतियों जड़ा सलौना,

बेला का गजरा.

 

पायल, बिछिया और महावर, 

वाले पाँव भुला बैठे.

काव्यरंगोली आज का सम्मानित कलमकार।डॉ .कमलेश शुक्ला कीर्ति कानपुर

 नाम- डॉ0 कमलेश शुक्ला

साहित्यक उपनाम- "कीर्ति"

निवास-कानपुर, उत्तर प्रदेश

शिक्षा - कानपुर यूनिवर्सिटी से एम0ए0 हिंदी, एम0 ए0 अर्थशास्त्र ,बी0एड0,

पी0एच 0 डी 0 विद्या वाचस्पति  उपाधि ,विद्या सागर डी0 लिट्0

शिक्षण कार्य- कानपुर यूनिवर्सिटी से सम्बध्द  महाविद्यालय में ।

विधा- गीत, गजल,दोहा,छंद मुक्त कविता,छंद युक्त कविता,बाल कविता ,मुक्तक,हायकु , कहानी।

मुख्य विधा- गीत -ग़ज़ल।

कईगीत ,गजल,कविता ,अखिल भारतीय कवि सम्मेलनों में एवम लखनऊ,कानपुर,शाहजहांपुर,फतेहपुर,दिल्ली ,प्रयागराज, उज्जैन ,समेत कई राज्यों में राष्ट्रीय स्तर के समाचार पत्रों ,पत्रिकाओं एवम बेब पोर्टल आदि में प्रकाशित ।

कार्य क्षेत्र- साहित्य एवम समाज

सम्मान- सारस्वत सम्मान,शारदा सम्मान,हिंदी गौरव सम्मान,हिंदी काब्य सम्मान,महादेवी वर्मा सम्मान, साहित्य शिखर सम्मान, दिल्ली द्वारा काब्य गौरव सम्मान,वाग्देवी रत्न से सम्मान ,वीर भाषा एकेडमी मुरादाबाद  द्वारा अंतरराष्ट्रीय सम्मान समारोह में साहित्य प्रतिभा सम्मान , राजस्व परिषद बार एसोसिएशन प्रयागराज द्वारा सम्मान, एवम,विश्व हिंदी रचना मंच द्वारा हिंदी सेवी सम्मान, अमर उजाला समाचार पत्र द्वारा अतुल महेश्वरी सम्मान,  भारत उत्थान न्यास परिषद द्वारा सम्मान , दिल्ली में युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच से श्रेष्ठ रचनाकार,वीर भाषा हिंदी साहित्य पीठ मुरादाबाद द्वारा अंतरराष्ट्रीय  सम्मान समारोह में साहित्य गौरव सम्मान, काब्य शिरोमणि सम्मान , प्रयागराज में मीरा बाई सम्मान से सम्मानित पुरवार शिक्षण संस्थान ,वज्र इंद्राभिब्यक्ति मंच ,माध्यमिक साहित्यिक मंच ,विकासिका साहित्यिक मंच ,तरंग साहित्यिक मंच,,इसके अलावा कई साहित्यिक मंच, विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ उज्जैन से  वाचस्पति विद्या  उपाधि  ,विद्या सागर  से सम्मानित एवम देश के कई विभिन्न संस्थाओं द्वारा कई प्रकार के सम्मानों से सम्मानित ।

सचिव ,उत्तर प्रदेश (मध्य इकाई)महिला काब्य मंच की।

प्रकाशित कृति- खेल धूप छाँव के, ( गीत एवम गजल) संग्रह ,मैं कविता हूँ (काब्य सँग्रह) (मीरा बाई सम्मान से सम्मानित)

तीसरा (गीत सँग्रह) " लहरें सागर की "

 

कई साझा काब्य संकलन  जीवंत हस्ताक्षर,काब्यलोक ,काब्य त्रिपथगा ,बाल साहित्य आदि।

मोबइल नम्बर-9453036314

कानपुर ।


गीत--------


देखकर  चाँद  को  चाँद के प्यार में

चाँदनी बन भ्रमण साथ करती रही।

गीत  गा ना  सकी  साथ  में प्यार के

रात भर चाँद को ही  निरखती रही।


देखकर  भोर  बेला  वहाँ  पर  तभी

आह  भरकर  तभी  लौटने  है लगी।

रह गया  तब अधूरा  मिलन  है  वहाँ 

उसकी यादें  दिल  में  धड़कती रही।


 राह  में  बैठ   दिन भर  निहारा उसे

प्रीति   दिल में  बसाकर  पुकारा उसे।

आ भी  जाओ प्रिय  हम निहारें तुम्हें

उर   बसा   वेदनाएं  कलपती   रही।


जा  रहे  छोड़कर तुम मुझे  अब कहाँ

रोक दो तुम गगन का भ्रमण अब यहाँ।

रात  का  यह  पहर  बीत जाए न अब

प्रिय   तेरे   लिए  ही   संवरती     रही।


डॉ. कमलेश शुक्ला कीर्ति

कानपुर।



छंदमुक्त रचना----


आत्मा और परमात्मा

दोनों का प्यार 

असीमित अपरंपार

दोनों की चाहत 

एक दूसरे के लिए

आत्मा परमात्मा को देखती

और परमात्मा आत्मा को

दोनों के बीच 

मौन संवाद

एक दूसरे में होने 

की अनुभूति

दिलाता हर समय

जीवन पर्यन्त

बिन बोले ही 

दोनों का प्रगाढ़ सम्बंध

यही तो है आध्यात्मिक प्रेम

जो महसूस तो होता है

पर दिखता नहीं

हर जगह मैजूद है

पर प्रकट नहीं

आत्मा हमेशा 

परमात्मा में मिलना चाहती

 परमात्मा आत्मा को

आत्मसात कर

एकनिष्ठ प्रेम!


डॉ .कमलेश शुक्ला कीर्ति

कानपुर।



गीत--- नारी महान है

**********************

प्रभु ने सुंदर छवि देकर बना के भेजा नारी है।

उर में ममता का सागर दे रचा दी श्रष्टि सारी है।।


अम्बर सी ऊँचाई दी सागर सी दे दी गहराई।

सहनशक्ति दे दी धरती सी तब नारी है बनाई।।

ज्ञानकर्म सब सद्गुण देकर दे दी जिम्मेदारी है।

उर में ममता का सागर दे रचा दी सृष्टि सारी है।।


कुंदन सा तपाकर भेजा सुंदर बना दी है काया।

पुरुषों के संरक्षण को बना दी उसको है छाया।।

उसकी खुशबू से महकाकर बना दी फुलवारी है।

उर में ममता का सागर दे रचा दी श्रष्टि सारी है।।


घर की जिम्मेदारी दे सजग रहना उसे सिखाया।

मर्यादा में रहकर ही जीना उसको सदा बताया ।।

दुनियाँ को प्रभु ने दे दी ऐसी कृति यह प्यारी है।

उर में ममता का सागर दे रचा दी श्रष्टि सारी है।।


प्रभु ने सुंदर छवि देकर बना के भेजा नारी है।

उर में ममता का सागर दे रचा दी श्रष्टि सारी है।।


डॉ. कमलेश शुक्ला कीर्ति

कानपुर।

9453036314



होली गीत--तेरे प्यार में मैंने साँवरे।

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तेरे प्यार  में मैंने  साँवरे  ऐसा  तन रंग डाला।

दूजा कोई रंग चढ़े न अब  तू सुन ले मुरली वाला।।



ज्ञान कर्म की बात बताकर, तुम ऊधौ को नहीं भेजो।

मेरा मन तो प्यार ही जाने, यहाँ ज्ञान रसिक न भेजो।।

नेहदीप जल रही है मन में तुम करो न गड़बड़ झाला।

दूजा कोई रंग चढ़े न अब तू सुन ले मुरलीवाला।।



जैसे पंक्षी उड़कर आकाश में लौट नीड़ को आये।

हमें ऊधौ कितना समझाएं पर मन तुमको ही ध्यावे।।

 कोई ज्ञान हमें न भावे जपूं तेरे नाम की माला।

दूजा कोई रंग चढ़े न अब तू सुन ले मुरलीवाला। 



तन तो मेरा एक है कान्हा ,मन भी है एक हमारा।

तेरे चरणों में लगा दिया जब ,हो गया अब यह तुम्हारा।।

कोई  रंग हमें न  भावे , तू सुन ले नन्द के  लाला।

दूजा कोई रंग चढ़े न अब तू सुन ले मुरलीवाला।



डॉ .कमलेश शुक्ला कीर्ति

कानपुर।


काव्यरंगोली आज का सम्मानित कलमकार डॉ.नंदिनी शर्मा'नित्या'



 डॉ.नंदिनी शर्मा'नित्या'

जन्मः इन्दौर(म.प्र.) जुलाई 1985

शिक्षाः एम.ए.(हिन्दी साहित्य),पी-एच.डी.दे.अ.वि.वि.(इन्दौर),

(एस.आई.टी.डी.)कम्प्यूटर टीचर

ट्रेनिंग,पी.जी.डी.आई.टी.से डीप्लोमा

बी.म्युज.(सितार)


- दे.अ.वि.वि. की शोध निर्देशक सन्2018 सेl

-यू.जी.सी.की शोध परियोजना "प्रभा खेतान और मन्नू भंडारी का अंर्तद्वंद-आत्मकथाओं के संदर्भ में"2016 में पूर्णl

सदस्यताः राधाकृष्ण किताब क्लब,नई दिल्ली की सदस्य

- अखिल भारतीय कवियित्री संघ की सदस्य

-संगीत कला परिषद इन्दौर की सदस्य


- राष्ट्रीय एवं अंतराष्ट्रीय सम्मेलनों,वर्कशाप एवं सेमिनारों में निरंतर सहभागिताI

- विभिन सांझा संकलनों,पत्र-पत्रिकाओं में रचनाओं एवं शोधपत्रों का प्रकाशनl

- महाविद्यालय में सांस्कृतिक एवं साहित्यिक गतिविधियों का आयोजन एवं संयोजनI

सम्मान- प्रतिभा सम्मान 

           मातृत्व ममता सम्मान 

          कल्पना चावला अवार्ड

           नारी शक्ति सम्मान

           शब्द सुगंध सम्मान

           नारी रत्न सम्मान


संप्रतिः सहायक प्राध्यापक हिन्दी,स्वशासी महाविद्यालय,

संपर्क: 327,जवाहर नगर देवास (म.प्र.)

फोन: 99261-53862



अजन्मा


नहीं पता था

क्या छुपा था 

काल के गर्भ में


पता नहीं कब  

कैसे वो पड

गया बीज कोख में 

पर उस बीज के पनपने से 

पहले ही कर दिया छिन्न भिन्न 

उसे अनचाहा करार देकर


किसी ने नहीं सोचा

क्या बीती उस 

माँ के दिल पर


अपना कलेजा दबाये

निकाल दिया उसे 

शरीर से अपने 

पर आत्मा उसे 

आज भी नहीं भूली

ओ मेरी अजन्मी संतानll


अभिलाषा


नयन अधिर 

अविराम एकटक 

निहारे तेरी राह मुरारी


हे! कृपानिधान

हे!दयानिधान

हम पर आई है

विपदा भारी


कष्ट निवारो

रोग भगाओ

इस महामारी से

हमको तारो

सकल जगत है 

प्रलयन्कारी


राह दिखाओ

हे!त्रिपुरारी

पहले जैसा 

जीवन कर दो

हम सब की 

बस यही अभिलाषा


इस कारावास से 

मुक्ति दे दो

तुम बिन ना 

कोई ठौर हमारो

हम पर कृपा 

करो हे!मुरारी 

पूर्ण करो 

मन की अभिलाषाl

                                             

                                               

चिडिया


मेरे कच्चे आँगन में 

अंबिया की डाली पर

चहकती है 

सुबह से चिडियों की टोली

गुनगुनी धूप में 

यहां वहां फुदकती रहती है

नन्हे बच्चों की तरह


चिडियों का चहकना 

अच्छा लगता है 

मन को

सुकुन देती है

उसकी

सुंदर क्रीडाएँ


जिसको देख

भूल जाती हूँ  

अपनी पीडा

खो जाती हूँ उनमें 

पलभर के लिए 

गृहस्थी के 

जोड घटाव से दूर


पंख फैलाकर

उडते-उडते

दे जाती है वो 

हौसला जिंदगी

जीने का

ऊँचे आसमान में 

उडने का

अपने सपनो में 

रंग भरने का

उन्हें साकार करने काl


                                  

       रिश्तें


रिश्तों की महक है 

रसोई के मसालों सी 

कुछ तीखी,कुछ मीठी 

तो  कभी खट्टी मीठी 

और फीकी सी

हर स्वाद का 

अपना जायका,अपना स्वाद

हर रिश्ते का अपना ढ़ंंग,

अपनी रंगत

कोई किसी से कम नहीं 

न कोई किसी से ज्यादा

बिल्कुल नमक की भांति

सधा हुआ,नपातुला


हर स्वाद का अपना नाम 

अपनी पहचान

हर रिश्ते का अपना मान  

अपना सम्मान

रिश्तों की एकता मॆं है 

जीवन का सार

रसॊई कॆ मसालों मॆं है

जायकॊ का स्वाद

रिश्तों की गहराई ही है

सुखी परिवार का आधारll


                                       

                                        

                                        डॉ.नंदिनी शर्मा'नित्या'

                                                 देवास(म.प्र.)

                                              9926153862



 

काव्यरंगोली आज का सम्मानित कलमकार श्रीमती सरोज सिंह ठाकुर बिलासपुर छग

 जीवन परिचय

पूरा नाम... श्रीमती सरोज सिंह ठाकुर 


माता का नाम.... श्रीमती बिमला ठाकुर 


पिता का नाम... स्वर्गीय श्रीमान चतुर सिंह ठाकुर 


पति का नाम.. श्रीमान् मधुसुदन सिंह वर्मा 



स्थाई निवास... इन्द्र सेन नगर सत्ताईस खोली.. जिला बिलासपुर.. छतीसगढ़। 


मोबाइल नंबर.. 9406288063

मै एक साहित्यिक कार हूँ। 


विधा.. लेखन छतीसगढ़ी, हिन्दी 


वर्तमान में छतीसगढ़ महिला कान्ती सेना की प्रदेश संगठन सचीव हूँ ।


बिलासपुर महिला साहित्य समिति समन्वय संस्था की संगठन सचीव हूँ। 


अपने राजपुत समाज की प्रदेश मंत्री हूँ। 


सम्मान... साहित्य समिति बस्तर द्वारा बेस्ट लेखिका सम्मान. 


अकाशवाणी जगदलपुर से गीत कहानी कविता का प्रसारण टीवी पर अभिनय 


शौक... गायन, लेखन, 

की मंचो पर संचालन का दायित्व



भ्रष्टाचार

...........

भ्रष्टाचार की इस नदी में। 

मै भी गोता लगा गई। 

कल तक थी अंजान यहां से। 

आज मै सब कुछ जान गई 


क्या होती राज और। 

क्या होती है राजनिति। 

क्या नेता और क्या अभिनेता। 

सबकी चाल अब जान गई। 

भ्रष्टाचार चार की इस नदी में मै भी गोता लगा गई। 


कल तक थी मै झोपड़ी में। 

आज महलों मे आ गई।

घूमती थी जिनके आगे पीछे। 

वो घुम रहे अब, मेरे आगे पीछे। 

नेता और चमचों की भाषा। 

आज मै जान गई। 

भ्रष्टाचार की इस नदी में। 

मै भी गोता लगा गई।



इंतजार "

मुझे इंतजार उस दिन का है 

जिस दिन मेरे घर आंगन में 

प्रेम और विश्वास के दीप जलेगे


मेरी आंखें उस पल का इंतजार कर रही है जब 

मेरे जीवन की बगिया में 

प्रेम  प्यार  और त्याग के 

फुल खिलेगे। 


मै जिन्दगी को जीना चाहती हू। 

मै भी अपने मन मंदिर में तुम्हे बिठाकर पुजना चाहती हू। 

तुम्हारे साथ जीवन के अंगिनत पलो जीना चाहती हू। 

मेरे हृदय के तार उस पल को महसूस करना चाहती है। 

जब।

तुम मुझे आकर कहो प्रिये 

मेरा जीवन मेरा तन, मन सब 

तुझको ही अर्पण है 

मै सदैव तुम्हारा हु। और सदा तुम्हारा ही रहुगा। 

मुझे उस पल का इंतजार रहेगा



मोदी की राजनीती

.......................... 

वाह मोदी जी ने कर दिया कमाल 

पल भर में ही कर दिया सबका बन्टा धार। 

क्या नेता क्या अभिनेता। 

सब थे अब तक माला माल। 

पल भर मै ही कर दिया रे सबको कंगाल। 

कहां जाऊ कहां जाऊ की हो रही है अब भागंभाग। कहां छुपाऊ अब तक का सारा काला माल। 

  

कुछ बात समझ में नहीं आई। 

रातो रात जनता नेता अभिनेता सबकी नीद उड़ाई। 


जनता को दुख है थोड़ा। पर

खुश है कि रातो रात काले धन पर लग गया अब अब ताला। 

न सोच थे जनता और न समझ पाऐ ऐ नेता की दिन ऐसा भी आऐगा। कि। 


चुप चुप बैठे मोदी। 

ऐसा तीर भी चलाऐगा। 

पल भर में ही ऐसा हाहाकार। 

सारे जहाँ मे मच जाऐगा।। 


अब होगी शान्ति देश में। 

अब जनता चैन की नींद 

सो पाऐगा। 

छुपा हुआ सारा काला धन। 

अब बहार आ जाऐगा 


अब होगी जनता खुश। 

अब लहराऐगा तिरंगा। 

आसमान में। 

सत्य शान्ति और अमन 🙏🏼🙏🏼🙏🏼🌹


धुप

,,,,,,,,, 

इस,,,,, तपती धूप में। 

चलो,,, कही  छांव  ढूंढ  ले। 

कुछ पल,, रुक कर। 

आओ मंजिल की  ओर  बढ़  ले... 

इस,,, तपती धूप में चलो,,, 

कहीं छांव ढूंढ ले। 


माना कि मंजिल,,, दुर है अभी।

पर '' इस तपती  धूप में। 

हमारे "कदम यु  न लड़खडांऐ। आगे। 

ऐसी एक  छांव  ढूंढ ले। 

इस  तपती धूप में चलो। 

कही  छांव ढूंढ ले। 


देती है... धुप  जिन्दगी में आगे बढ़ने की। 

गर कर लो दोस्ती  इससे। 

तो  मंजिल भी मिल  जाऐ। 

ऐसी  एक बुनियाद  रख लो 

आओ इस तपती  धूप में। 

कही छांव ढूंढ ले। 


सच्चाई है जिन्दगी की यही 

मौत  नहीं  देखती... क्या 

धुप  है या छांव 

क्यो की इन्सान की। 

असलीयत ही  है,, 

मरधट  की  छांव।


साथ 

........ 

ईश्वर से करना है प्रार्थना 

दोनो.. हाथों का साथ  चाहिए।... मांगनी  है दुआ.. किसी के  लिऐ... ईश्वर का  साथ चाहिए। 


आनाथो को किसी अपनो का।... भुखे को  रोटी का, बेसहारा को सहारा का, साथ  चाहिए... हर  हाथ को काम  चाहिए..। 


रथ को सारथी का. शव को अर्थी का, पंडित को आरती का, माँ  भारती को  सच्चे  हिन्दुस्तानी  का साथ  चाहिए।... आज  देश के लिऐ  मर मिटे... ऐसा सच्चा  सिपाही का साथ चाहिए। 


हाथ से हाथ  मिला, जीवन में, जीने का साथ  मिला... धरती को अकाश  का साथ  मिला... अंधियारे को  उजाला  का साथ  मिला। 


माता को पिता का, बच्चों को माता पिता का, घर को परिवार का, भाई को बहन का,, मुझे  ऐसा परिवार मिला... संस्कृति  संस्कार का साथ  मिला... शुक्रगुजार  हूँ  की  मुझे  विश्वंमंच का साथ मिला.... दोस्तो.. सखियों से भरा परिवार  मिला.... 

सरोज सिंह ठाकुर 🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🌹



कभी नीम. नीम। 

कभी शहद. शहद। 

लगती है  जिन्दगी। 

भुझको कहीं रंगो से भरी। 

तो कहीं बेरंग सी लगती है। 

लगती है जिन्दगी.... 

कभी  नीम नीम। 

कभी शहद शहद 

लगती है  जिंदगी 


देखती हूँ... जब पन्ने। 

जिन्दगी के खोल के। 

कभी बेबस।, तो कभी। 

लचार सी... लगती है। 

जिन्दगी... 

कभी नीम नीम। 

कभी शहद शहद। 

लगती है। जिदंगी 


खुशी और गमों के 

रंगो का मेल है... ऐ जिन्दगी। 

गम को छोड़ के। 

दामन भर लो खुशियों के रंग से.... अपनी जिंदगी। 

लगने लगेगा फिर.... शहद है जिदंगी। 

कभी शहद शहद। 

तो कभी नीम नीम  है। 

जिन्दगी।

प्रेम 

.... 

मौत के आगे हर कोई हारता है.. यहां 

सच तो यही है... जब तक जीवन है तब तक आस 

तोड़ नफरत की दिवार आज। 

प्रेम को अपनाओ। 

छोड़ मै मै को आओ हम हो जाओ। 

प्रेम का रस पीकर देखो आज 

नफरत का जहर भुल जाओगे 

कल तक दुर थे अपनो से 

आज उनको करीब अपने पाओगे। 

प्रेम हमेशा जोडता है जीवन से बस आज इसी को अपनाओ 

आओ मै से बस हम बन जाओ


काव्य रंगोली आज का सम्मानित कलमकार मनीषा जोशी मनी ग्रेटर नोयडा

 संक्षिप्त परिचय. नाम मनीषा जोशी

जन्म 13मई

पता सिल्वर सिटी ग्रेटर नोयड़ा

कवयित्री..कई संस्था से सम्मानित तीन पुस्तकें प्रकाशित.कई मंचों से काव्यपाठ व पत्र पत्रिकाओं मे रचनाऐं लेख व कहानियां प्रकाशित.

mj0001997@gmail.com


यशोधरा..कविता 1

बरसों बाद हुए हैं दर्शन,आज तुम्हारे

निष्ठुर, पाथर ,भगवन बोलों कैसे 

 करूं तुम्हें संबोधन ...

अर्ध रात्री की स्वप्न बेला में छोड़ अकेला 

सरल राह को मेरी अंचित कर डाला..

विरह अश्रु आहें यादें थी. आत्म ग्लानि..

वेदना के हर एक क्षण में थी कहानी..

थे भयावह कितने मेरे वो स्वप्न जिनमें..

वन में वृक्षों के मध्य तुम जाते दिखे थे

मार कर सम्पूर्ण इच्छाऐं मेरे ह्दय की.

वन गमन कर तुम समर्पित हो गये थे

मोह माया तज खड़े हो आज जो तुम बुद्ध बनकर 

मैं भी पालनहार बनी हूं कर्तव्यों को यू सिद्ध कर 

काट लिया एकाकी ही मैनें ये जीवन सारा

अपने भीतर की शक्ति को जब  ललकारा

रोते राहुल को तब लगाकर मैं छाती से...

पालती थी पोसती थी जलती थी बाती सी

ज्ञान हुआ तुमको तो मुझको भी भान हुआ.

स्त्री की पूर्णता का शक्ति का अनुमान हुआ..

मैं सृष्टि, मैं धरती, मैं जीवन के प्रतिमानों सी.

मैं यौगिक, मैं नैतिक, मैं दुख: के निदानों सी.

 आज स्वागत तुम्हारा है भगवन इस आँगन में .

हे बुद्ध अब तनिक भी कटुता नहीं इस मन में.

@मनीषा जोशी मनी..




खिड़कियाँ--कविता 2

दिन ढलते  ही काटने लगता है अकेलापन, बोझ से लगते है दरवाजे ,डराने लगती है खिड़कियां, गुज़र रहें है दिन बस यू ही थकान भरी साँसो की तरह।

 अकसर जब मैं देखती हूं इन खिड़कियों के शीशे से मई जून की चिलचिलाती धूप, नस नस में मेरी उबलने लगतीं हैं  वो उजली सुनहरी यादें,

 जब पड़ता है इन खिडकियों के शीशे में आग सा चमकता सूरज पिघलने लगता है सालों पुराना दर्द बूंद- बूंद कर बहने लगता है मेरे गालों पर।  वही बरसात में जब नम आखों से देखती हूं  मैं इन खिड़कियों को छूती बारिश भीग जाती हूं भीतर तक खुद ब खुद कई बार होने लगती है इन आँखों से ढेरों बरसात, और कांटों सी चुभती है ये सर्दियों की ठंडी रातें जब जमती इन कांच की  खिड़कियों में ओस की  बूंदें और धीरे- धीरे फिसल कर मिटाती बनाती हैं अनेक डरावनी आकृतियाँ बिलकुल वैसी जैसे मेरे मन के भीतर बनती बिगड़ती रहती हैं ना जाने क्यों इन खिड़कियों और मुझमे  बहुत कुछ समान लगने लगता है उस पल, लेकिन फिर भी मुझसे कही ज्यादा भाग्यशाली है ये खिड़कियां ,जिन पर हर वक़्त रहती है मेरी नज़रें तुम्हारे इंतज़ार में, कुछ नया कुछ अलग देखने की  चाह में,  पर मुझ पर??? नहीं- मुझ पर नही रहती किसी की  नज़र न किसी को है मेरा इंतज़ार जब से तुम गये हो छोड़कर मुझको पतझड़ में।

@मनीषा जोशी।

ग्रेटर नोएडा ।


3 श्रद्धांजलि 

बोझिल  मन है ,रोती आँखे 

राह दिखाने वाला देखो 

आज हमें यू ,छोड़ चला है 

शान्त देह है मौन कवि मन _

अश्रु  लिए हैं विश्व के जन जन 

दूर दूर तक ,भीड़ जमा है _

आज एक सूरज ,अस्त हुआ है 

शोकाकुल है ,समस्त दर्शक

जीवन पथ का ,पथ प्रदर्शक.

जीवन से मुँह ,मोड चला है 

आज रो रहे ,भारतवासी 

ह्रदय ह्रदय ,में भरी उदासी _

एक युग का अंत हुआ है 

कोई ना ऐसा संत हुआ है

 राजनीति में रहकर जिसने 

पाठ पढ़ाया मानवता का 

अर्पण किया देश को जीवन _

लोभ न था जिसको सत्ता का .

कर्म प्रधान था जिसका तन मन_

जिसका धन था ये कविताधन

मुखमंडल मे तेज सजा था

वाणी मे भी अोज भरा.था

जिसने  वाणी के गौरव से

मन से बांधें मन के धागे 

राह दिखाई, अटल जो हमको

हम सब चले उसी पर आगे _

अमृत की अभिलाषा है जब

 विष के पीछे क्यो हम  भागें 

अमृत की अभिलाषा है जब

 विष के पीछे क्यों हम भागे 

मनीषा  जोशी  मनी



गीत 4

मन से मन में  बीज लगन का  बोना बहुत ज़रूरी है

प्रेम अगर है संवादों का  होना बहुत ज़रूरी है।

कुंठित मन होगा तो कैसे रिश्तों में खुशबू महकेगी।

त्याग समर्पण से ही तो आँगन में हर खुशी चहकेगी

छोटे छोटे दुख सुख को जब हम आपस में बाँटेंगे।

मन में तब वो नेह भरी फूलों की  डाली लहकेगी।

रिश्तों की  गागर को मन से ढोना बहुत ज़रूरी है

प्रेम ....

एक दूजे की पीड़ा को आँखों से पढ़ना होता है।

प्रेम भरी औषधि से मतभेदों को भरना होता है।

खट्टी मीठी बातों से मीठे को चुनना होता है।

अन्तर्मन से पावन संबंधों को गढ़ना  होता है।

दुख में  सुख में साथ चलें, ये चलना बहुत ज़रूरी है

प्रेम अगर है...

अलसाई  सी आँखों से रातों को जगना पड़ता है।

अर्पण कर सर्वस्व कभी खुद को ही ठगना पड़ता है।

निश्चित करना उस क्षण खुद तुम सच्चाई पर चलना है।

प्रेम नगर नें विश्वासों के  पीछे चलना पड़ता है।

छल को पथ से दूर करे जो, टोना बहुत ज़रूरी है।

प्रेम अगर है....

मनीषा जोशी मनी



गीत5

मैंने जीवन मे जो खोया तुमको वो न खोने दुंगी

वादा है तुमसे ये बिटियाँ तुमको मैं न रोने दुंगी

पल पल मान गवाँया मैंने पल पल मैंने अश्रु पिये है मेरी पीड़ा मे बस मैं थी 

ऐसे भी दिन रात जिये हैं 

जैसा जीवन ढोया मैने तुमको वो न ढ़ोने दुंगी।

वादा है तुमसे ये बिटियाँ तुमको मैं न रोने दुंगी।

तुम चंदन तुम पारस मेरी

 तुम सच्चे मोती का  दाना।

तुम गंगाजल तुम निर्मल मन ।

जीवन क्या है तुमसे जाना।

बचपन की  प्यारी बगियाँ मे काँटे मै न बोने दुंगी।

वादा है तुमसे यह बिटिया तुमको मैं ना रोने दूंगी ।

क्षमता का भंडार बना दूं ।

मैं तुम को हथियार बना दूं।

छू ना सके कोई कपटी मन

तुमको मैं तलवार बना दूं।

तुमको बल दिखलाए कोई ऐसा मैं ना होने दूंगी वादा है तुमसे बिटियाँ तुमको मैंने रोना दूंगी ।

@मनीषा जोशी मनी

ग्रेटर नोयडा



mj0001997@gmail.com

काव्यरंगोली आज का सम्मानित कलमकार प्रीतम कुमार झा महुआ, वैशाली, बिहार

 संक्षिप्त परिचय

प्रीतम कुमार झा,  अंतरराष्ट्रीय युवा कवि, गायक सह शिक्षक, महुआ, वैशाली, बिहार 

भारत प्रभारी अंतर्राष्ट्रीय काव्य प्रेमी मंच, तंजानिया, अफ्रीका

राज्य प्रभारी सामयिक परिवेश बिहार अध्याय

राज्य सचिव राष्ट्रीय साहित्य वाटिका

श्रृंगार और वीर रस कवि

अब तक 1000 से अधिक राज्यस्तरीय, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हो चुका है।

हिन्दी साहित्य रत्न, पद्म श्री विष्णु वाकणकर पुरस्कार, सारस्वत सम्मान, वैशाली साहित्य रत्न सम्मान, साहित्य श्री सम्मान, पूर्वी अफ्रीका तंजानिया से अंतर्राष्ट्रीय काव्य प्रेमी मंच पुरस्कार,साहित्य गौरव सम्मान,समरस साहित्य सम्मान,हिंदी सेवी सम्मान-2021 इत्यादि ।स्वप्न-साहित्य सेवा,भारत सेवा ।

रचना की झलक-

"अपनी अंतर्ज्योति से तम का नाश कर दूं,

 तेरे नाम मैं अपनी सारी तलाश कर दूं, 

मैं खुद की खोज में भटकता रहा अब तलक,

अब आंखें मूंद के तुझपर सारा विश्वास कर दूं ।"




अधूरी प्यास

सूनी हो गयी, दिल की गलियां,

सूख गयी है,प्यार की कलियाँ

अब तो दरस दिखा जा,

बिछड़े साथी आजा-2


तुम हो हमारे, हम भी तुम्हारे,

हर पल दिल अब,तुझको पुकारे

अब तो सामने आजा,

बिछड़े साथी आजा-2


तेरी बिन अब जी ना सकेंगे,

जख्मों को अब सी ना सकेंगे

तूं हीं राह दिखा जा,

बिछड़े साथी आजा-2


मन में बसी है सूरत तेरी,

मेरी पूजा मूरत तेरी

प्यार को प्यार दिला जा

बिछड़े साथी आजा-2

       ---प्रीतम कुमार झा

    महुआ, वैशाली, बिहार ।



       

             शहीद उधम सिंह जी।


है तुझे मां नमन,जां से प्यारा वतन,

जग का सिरमौर है,शांति का ये चमन।

दासता को मिटाने, उस अंग्रेज से-2

बांध सर पे वो आया था,जिसने कफन।

है तुझे.....!!!

             

       जन्मे पंजाब के गाँव सुनाम में,

      रह सके ना अधिक, ममता की छांव में ।

       फिर तो भटके उधम,इस गली-उस गली-2

      कितने छाले पड़े,फूल से पांव में ।

       है तुझे....!!!


आयी वैशाखी की एक पावन घड़ी,

सबके मन में समायी,खुशी की लड़ी।

आ गया फिर अचानक, वो डायर तभी-2

जिस तरफ बाग में, देखो लाशें पड़ी ।

है तुझे...!!!


           मन में उस दिन उधम ने इरादा किया,

           मार दूंगा उस डायर को वादा किया ।

           तोड़ दूंगा गुलामी की सब बेड़ियां-2

           बाजुओं के भरोसे को ज्यादा किया ।

           है तुझे....!!!


आग बदले की दिल में तो जलती रही,

साल पे साल और रूत बदलती रही।

फिर तो आया वो दिन जिसका इंतजार था-2

गोली पापी के सीने पे चलती रही।

है तुझे...!!!


           राम सिंह हैं मोहम्मद वो आजाद हैं,

           हर बुराई से जीते वो फौलाद हैं ।

           फंदे को चुमकर चढ़ गये फांसी वो, 

          आज भी सबके दिल में, वो आबाद हैं।

          है तुझे...!!!


                 ---प्रीतम कुमार झा,बिहार, भारत ।


 


 गोरा-बादल का बलिदान


धन्य भूमि है भारत तेरी, सबसे अलग पहचान है,

तुमने वीर जने हैं कितने, हमको ये अभिमान है।


तेरी इज्जत की खातिर मां,सबकी जां कुर्बान है,

है हमको ये फख्र ये मैया, हम तेरी संतान हैं ।


वीर वो धरती जहां अमर सिंह, रहते स्वाभिमान से,

प्यार उन्हें था जान से बढ़कर, अपने वतन की शान से।


काल चक्र ने कुचक्र चलाया, काली घटा घिर आयी,

खिलजी की सेना से नौबत,आर-पार की आयी ।


जब देखा पापी खिलजी ने,पार कठिन है पाना,

किया षड्यंत्र उसने धोखे से,कुंवर को किया निशाना ।


तब पद्मिनी मां ने बढ़कर, थाम लिया बागडोर,

घोष हुआ धरती-अंबर में ,किया सबने था गौर।


गोरा-बादल पूत थे सच्चे, रानी से किये कुछ वादा,

सकुशल लायेंगे अपने कुंवर को,दृढ़ था उनका इरादा।


मां पद्मिनी साथ चली,डोली संग चतुर कहार,

मानो दुश्मन दलन को उद्यत, स्वयं कालिका तैयार ।


हुई लड़ाई ऐसी जैसा, देखा ना कोई जग में,

बिजली बनकर टूट पड़े,दुश्मन के वो पग-पग में ।


जो ठाना था मन में सबने,आखिर पूर्ण हुआ वो,

पर गोरा-बादल कब होते,दुश्मन से कभी काबू।


प्रलय बने वो,काल बने वो,मच गया हाहाकार,

दुश्मन सेना डरकर भागी,मच गयी चीख पुकार ।


तभी अचानक सबने मिलकर, घेर लिया बांकुरों को,

जैसे गीदड़ घेर हैं लेते,कभी-कभी कुछ शेरों को।


जबतक जान बची थी तन में, हाहाकार मचाये,

शीश कट गये फिर भी,दोनों मस्तक नहीं झुकाये।


वीर शिरोमणि कहलाये वो,अमर बने इतिहास में,

नाम रहेगा हरदम उनका, हर सांसों की सांस में ।

    

               ---प्रीतम कुमार झा।

          महुआ, वैशाली, बिहार

             9525564374


चलो एक बार फिर से


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चलो एक बार फिर से प्यार में, सपने सजायें हम,

खो के एक-दूजे में खुद को,अब भूल जायें हम।


बहुत रोये तेरी खातिर, मगर अब रो न पायेंगे,

बहुत खोया है उल्फत में, मगर अब खो न पायेंगे ।


बने मिसाल कुछ ऐसे, वहीं करके दिखायें हम,

चलो एक बार फिर से प्यार में, सपने सजायें हम ।


माना यार दुनियां में कठिन ,राहें मोहब्बत की,

मगर दिल का करूं अब क्या, जरूरत एक-दूजे की।


सफर इस इश्क का मिलकर, सनम ऐसे बिताये हम,

चलो एक बार फिर से प्यार में, सपने सजायें हम ।


जुनून-ए-प्यार का हमपर,असर ये है भला कैसा,

मुझे सारी लगे दुनियां, तुम्हारे ख्वाब के जैसा ।


बस्ती में दीवानों की,अब अव्वल तो आयें हम,

चलो एक बार फिर से प्यार में, सपने सजायें हम ।

                       

                  ---प्रीतम कुमार झा 

            महुआ, वैशाली बिहार


 बेटी

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बेटियाँ जान हैं, बेटियाँ मान हैं-2

बेटियों से हमारी ये पहचान है।

 घर में बेटी जो है,फिर तो रौशन है घर,

बेटियों से है होता, सुख से बसर।

बेटियाँ ख्वाब हैं, दिल के अरमान हैं,

बेटियों से हमारी ये पहचान है।

हर कदम साथ दे,सबसे आगे रहे,

भाग्य उनसे हमारे ये जागे रहे ।

सच कहूं बेटियाँ, सबकी मुस्कान हैं,

बेटियों से हमारी ये पहचान है।

जग का है वो सृजक,है खुशी से चहक,

रूप कितने धरे,फूलों की हैं महक ।

बेटियाँ जो न हो,फिर तो क्या शान है,

बेटियों से हमारी ये पहचान है।

              ---प्रीतम कुमार झा

    महुआ, वैशाली, बिहार


काव्यरंगोली आज का सम्मानित कलमकार दावानी

 परिचय


नाम    लक्ष्मण दावानी


पिता   स्व.श्री हरपाल दास दावानी


शहर   जबलपुर


जिला  जबलपुर


राज्य   मध्य प्रदेश



गीतिका


दिल  मुहब्बत  में  उसे  अपना  जलाते देखा

अपना  दामन  उसे  अश्कों  से भिगाते देखा


हर  तरफ  फैल  रहा  है ये उजाला  जिस से

चाँद  आँचल  में  उसे  वो  ही  छुपाते   देखा


थी  नसीबों  में  लिखी  जिस के बुलंदी छूना

सब से  नजरें  उसी  को ही  है  चुराते  देखा


दाग  दामन  पे  थे उस के  बे बसी के शायद

सर  इबादत  में  सदा उस को  झुकाते  देखा


प्यार , इजहार , मुहब्बत  पे  भरोसा  कर के

अश्क   आंखों  से   उसे  हमने  बहाते  देखा


आईना खुदको बनाकर के हकीकत का अब

ऐब  अपने   ही  उसे   सब  से  छुपाते  देखा

            



अनबुझी प्यास थी दिलमें या शराफत उसकी

रिश्ता   अपनो  से  उसे   खूब  निभाते  देखा



दिलो के  दर्द का  कोई सहारा  क्यों नहीं होता

भरी दुनिया में भी कोई हमारा  क्यों नहीं होता


तड़फ कर  दे रही है आरजू भी ये सदाएं अब

निगाहों में हमारी अब नजारा  क्यों नहीं होता


मुहब्बत कसमसाती ही रही है उम्र भर दिल में

हमारे  इश्क का कोई , किनारा क्यों नहीं होता


भटकता  ही  रहा  हूँ  मैं  जमाने  से अंधेरो  में 

दिखादे जो हमें मंजिल वोतारा क्यों नहीं होता


नहीं है जब नसीबो में , लिखी  मेरे मुहब्बत तो

बिना इसके मेरा फिर ये गुजारा क्यों नहीं होता


बसा है दिल में जो मेरे  जमाले हुस्न ओ यारा 

निगाहों  से मेरी  उसका उतारा क्यों नहीं होता

                




समा बाहों में तुम अपना, ठिकाना भूल  जाओगे

करूँगा  प्यार  में  इतना  , ज़माना भूल  जाओगे


लगा के  देख लो हमको गले अपने  कभी जानम

अदा से  इस तरह हम को , रिझाना भूल जाओगे


चुरा  लूँगा  निगाहों  से तेरी  में इस  तरह काजल

शरारत से  किसी का दिल , चुराना भूल जाओगे


अंदाजे  गुफ्तगू  मेरा  कभी  जो  देख  लोगे तुम

जुबां  से  तुम  मुझे अपनी लुभाना भूल जाओगे


अगर जो  देख लोगे जख्म सीने  पर  मुहब्बत के

नजर से  तीर  तुम अपने , चलाना  भूल जाओगे


अधूरे  ख्वाब  जलते  देख आँखों में  मुहब्बत के

सुहाने  खाब  नज़रो   में  सजाना  भूल  जाओगे

             ( लक्ष्मण दावानी )




ख्वाब झूठे सजाने से क्या फायदा

रेत पर  घर  बनाने से क्या फायदा


जो  अंधेरे  मिटा   ही  न  पाएँ  मेरे

दीप  ऐसे  जलाने से  क्या  फायदा


जो बना दे  तमाशा  तेरी जीस्त को

उनसे रिश्ता निभाने से क्या फायदा


मौत से  ज़िन्दगी जीत  सकती नहीं

उस से नज़रें चुराने  से क्या फायदा


तुलते हों रिश्ते धन के तराजू में जो

उनकोअपना बनाने से क्या फायदा


काम नाआए मजलूम के जो किसी

ऐसी दौलत कमाने से क्या फायदा

( लक्ष्मण दावानी ✍जबलपुर )

20/9/2020




मैल ही मैल हो जब भरा मन में तो

ऐसे  गँगा  नहाने  से  क्या  फायदा


थाम   ले  हाथ  मेरा  आज   सवँर  जाने  दे

भर ले  बाहों  में  मुझे आज  बिखर  जाने दे


आग  जो  दिल में  मुहब्बत कि  लगी है मेरे

अपने  दिल  मे  तू  उसे आज उत्तर जाने दे


ओढ़ कर अपने  लिहाफो  में मुझे ऐ हमदम

अपने  पहलू  में  मुझे  आज  ठहर  जाने दे


माँग के लाये हैं हम चन्द मिलन की घड़ियाँ

प्यार  में  डूब  के  मुझे  अपने मर  जाने  दे


हम छुपा लेंगे नशेमन  में बसा  कर तुम को

साथ इक पल तो  जरा अपने गुजर जाने दे

          ( लक्ष्मण दावानी


✍ )

काव्यरंगोली आज का सम्मानित कलमकार सुनीता उपाध्याय वासिन्द

 नाम -सुनीता उपाध्याय

पता -जे. एस. डब्ल्यू., वासिन्द

संपर्क - एल. वी. साउंड, ग्रुप

मो0+91 75071 42333

उपलब्धियां - कविताओं के रंग लता नौवाल के संग भाग -1 साझा संकलन


रामायण  के प्रासंगिक पात्र भाग 1


सोशल मीडिया पर आयोजित विभिन्न सम्मान एवम प्रतिभाग


कला साहित्य समाजिक सरोकारों हेतु असंख्य मंचो पर सफल प्रस्तुति एवम पुरस्कार 


कोई भी शाशकीय पुरस्कार प्राप्त नही


Jsw टाउनशिप वाशिंदा मुम्बई




जिन बचपन के दिनों मे था, हॅसना - खेलना 

वो तो मजदूरी के दलदल मे धंस गया 

उसकी आँखें तो तरसती थी दो वक़्त के खाने को 

मगर धिक्कार के धक्के से भूखा ही सो गया 

भूखे पेट मे जान नहीं, क्या ये बच्चा इंसान नहीं?? 

बचपन क्या होता है, यह ना जान पाया 

नन्हे का  बचपन तो मजदूरी मे खो गया 

बाल मजदूरी महापाप है, नियम तो बना दिया है 

देश के उज्जवल भविष्य के लिए बाल  मजदूरी को हराना है.

                            धन्यवाद 🙏

           सुनीता उपाध्याय,     

                              वासिन्द




सुप्रभात 


ना हो तुम निराश, देर अगर जो हो जाये 

ऐसा कुछ नहीं जग मे, जो तुमसे ना हो पाये 

राह नहीं आसान है यह, मुश्किलें तो रास्ते मे आयेंगी 

ज्ञान हो अगर लक्ष्य का निश्चित सफलता मिल जाएगी 

गिरने मे नहीं लगता वक़्त, लगता है नाम कमाने मे 

खुद ही चलना पड़ता है, ना साथी कोई जमाने मे 

कुछ भी करना जीवन मे, करना ना काम बदनामी का 

रहना इस तरह कि  बना रहे सम्मान जीवन का 

किस्मत पर भरोसा मत करना, ये राह तुम्हें भटकाएगी 

खड़े रहना सीना तान निश्चित सफलता मिल जाएगी 






           वसंत ऋतु

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आया है ऋतुराज वसंत ,

लाया है संग नव यौवन l


खिली है रंगत मौसम में ,

फूली है - सरसों खेतों में l


किया है फूलों का श्रृंगार धरती ने,

फैलाया है वसंती बयार प्रकृति ने l


कल कल करते झरनों जैसा,

सुनाई देता कलरव चिड़ियों का l


नयी उमंग, नयी तरंग जैसा,

छाया है मधुमास चमन का l


 माँ सरस्वती का  करें  आव्हान 

नववर्ष में खुशियों का दें वरदान l




    आशियाना

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चलो एक नया आशियाना बनायें,

प्यार से मिल - जुलकर उसे सजायें l


भरोसे की नींव से मजबूत हों  दीवारें,

दूसरा कोई गम ना उसमें समाये l


मिले प्यार और आशीर्वाद अपनों का,

बढ़ते क़दमों को नयी मंज़िल मिले  l


 जगमगा उठे आँगन,बुजुर्गों की मुस्कान से

और बन जाये एक सुन्दर आशियाना l





          जीवन

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जीवन एक रेलरूपी यात्रा है,

जिसका कोई अंत नहीं है l


यह स्वयं में एक बेहतरीन किस्सा है,

जिसमें ढेरों कहानियाँ छिपी है l


जहाँ इसमें प्रेम और वैराग्य है,

वहीं यह एक सुन्दर नगमा भी है l


इसमें हर कदम पर चुनौतियाँ है,

तो मुकाबला करने की ताकत भी है l


 जीवन में  समर्पण का भाव हो, 

  तो वह प्रेरणादायी बन जाता है l



           धन्यवाद 

      सुनीता उपाध्याय


काव्यरंगोली आज का सम्मानित कलमकार कवि कुमार गिरीश गंगागंज राज0



 🌹 जीवन परिचय --🌷

                    ~~~~~~~~~


1- नाम --  गिरीश कुमार सोनवाल 

2 - उपाधि-- (A)कविराज 

                   (B)  रौद्र निराला

3- पिता का नाम -------रामचरण सोनवाल

4- माताजी -------संतरा देवी 

5-जन्म एवं जन्म स्थान---25may 1995 ,मिर्जापुर गंगापुर सिटी ,

   कर्मभूमी - जयपुर 

6--  पता  :- गंगापुर सिटी सवाई माधोपुर (राजस्थान ) 

7-- फोन नं.---------9667713522, 6378510174

8- शिक्षा............. स्नातकोत्तर,  upsc aspirant 

9- व्यवसाय--------  student 


10- प्रकाशित पुस्तकों की संख्या एवं नाम_____


○चारू काव्य धारा ,

○अक्षर सरिता धारा 

○आधुनिक युवा श्रृंगार 

○आज की प्रीत


○मां-भारती कविता संग्रह

○हौसलो की उड़ान





        


11-लेखन विधाएं: - 


वीर (ओज), रोद्र  एवं  श्रृंगार  ,मुक्तक     छन्द, कहानिया, सामाजिक एवं आध्यात्मिक लेखन कार्य ,

 साहित्य के क्षेत्र में सम्मान भी प्राप्त,विभिन्न समाचार पत्र-पत्रिकाओ में प्रकाशित रचनाएं



🌹संभल जा मानव🌹


 संभल  जा अब मानव तू  जरा ,

 समझ जा़ वक्त है अब भी तेरा ।


बिलख  कर  रोता रह  जाएगा ,

 समय  की  धारा  समझो जरा ।।


 मत बनो तुम  लापरवाह  अब ,

 संभल  जा अब मानव तू जरा ।


 कुछ  नहीं   जाएगा   रे   तेरा  ,

चंद  दिनों  की  बात है  ये जरा  ।


वरन  जान  से   जाएगा  व्यर्थ ,

 संभल जा अब मानव  तू जरा  ।।


मुश्किल   ये   दौर  चला  गया  ,

तब  भले  चाहे  जो  कर  लेना ।।


 समझ जा वक्त है अब भी तेरा ,

 सितम कर ना  किसी  पर जरा ।


 बिलख   जाएगा  सारा   जहां  ,

कर  न  तू     लापरवाही   अब ।।


........

कवि कुमार गिरीश

9667713522

  गंगापुर सिटी सवाई माधोपुर 

(राजस्थान)



🌹 बेटियां🌹




 बड़े नसीबों से मिलती है,

 भाग्य वालों को मिलती है ।

 किस्मत  वाले  होते  हैं वो,

 जिनको बेटियां मिलती  है।।


वो घर रोशन हो जाता है,

 जिस घर होती है बेटियां ।

घर भी  जन्नत  बन जाए ,

 बेटी के जो पग पड़ जाए।।


 बेटियां है तो सब कुछ है,

 वरना सारा जग वीरान ।

 बेटियों से ही है हम सब ,

 और सारा जगत-जहान।।


 दौलत-शोहरत घर की,

 मान-सम्मान हमारा है ।

मिलती है जिनको बेटियां ,

भाग्य स्वर्ग से प्यारा है ।।


किस्मत वाले हैं वो जिनको ,

ये प्यारी बेटियां मिलती है।

  बड़े नसीबों से मिलती है ,

 भाग्य वालों को मिलती है।।

.....

....

कवि कुमार गिरीश 

 गंगापुर सिटी सवाई माधोपुर 

राजस्थान

9667713522





🌹क्या भूल गई तुम🌹


हे नारी !

          आदिशक्ति!


क्यूॅ    तुमने  अपनी ,

पहचान   गवाॅ    दी ।

क्या  भूल  गई  तुम ,

अपना वीराना इतिहास।।

इक    बार    उठाकर ,

इतिहास तुम देख लो ।

तुम हो  वही जिसने ,

नामर्दो को धूल चटा दी ।।


निज  दूध  -  री ,

लाज  बचाने  खातिर ।

कंगन उतारे हाथो से ,

हटाई माथे की बिंदिया ।।

हाथो मे उठाऐ भाले ,

भाल पर लगाई माटी ।

कूद  पडी  जौहर  मे ,

ज्वाला चण्डालिका बन ।।


तुम   बैठी  हो  यूॅ ,

शरमा - इठलाकर ।

और कितने उदाहरण ,

ढूढकर   लाऊ  मै ।।

इस पावन धरा पर ,

जितने भी संग्राम हुए ।

क्या भूल गई तुम ,

तुम्हारे ही पीछे हुये ।।


तुम्हारा   इतिहास   बडा ,

वीराना और खौफनाक है ।

नर मुण्डो  की  माल गले ,

पहनती वो , आदिशक्ति हो ।।

दहक-दहक-दहके ज्वाला ,

तुम  वो  प्रचण्ड  अग्नि  हो ।

अरे  क्या   भूल  गई  तुम  ,

तुम   झांसी   मर्दानी   हो ।।


सुध   लो   और   अब ,

जाग जाओ उठ जाओ ।

लाज   शर्म   छोडकर ,

पहन   केसरिया  बाना ।।

कंगन - चूडी की जगह ,

हथियार    धारण  कर ।

रण मे उतरकर अबला ,

संग्राम महाभारत कर दो ।।


तुम  जगदम्बा  चंडालिका ,

कालिका  श्री   चरणों  में  ।

वाशिंदगी बिच उठने वाले ,

सारे  मुंड   माल   डाल दो ।।

कुकृत्य कलुषित्ता का तुम ,

कर दो ,हां कर भी दो संहार ।

 अबला नारी का एक परिचय ,

 दिखा दो फिर से दुनिया को।।


...........

कवि कुमार गिरीश


काव्यरंगोली आज का सम्मानित कलमकार डॉ.सुषमा सिंह आगरा

 नाम-डॉ.सुषमा सिंह

उम्र-67 वर्ष,जन्मतिथि-24दिसमम्बर1952

पता-8/153,I/1,न्यू लॉयर्स कॉलोनी,आगरा-282005

व्यवसाय-अध्यापन रहा,प्राचार्य,आर.बी.एस.कॉलेज से अवकाशप्राप्त।17-9-1975से30-6-2014तक स्नातक-स्नात्कोत्तर कक्षाओं में हिन्दी भाषा और साहित्य का अध्यापन,34शोध छात्रों को निर्देशन में पीएच.डी की उपाधि प्राप्त।12से अधिक वि.वि.में और उ.प्र.,म.प्र.,उत्तराखण्ड,झारखण्ड,छत्तीसगढ़ एवं यू.जी.सी में प्राश्निक एवं परीक्षक।


मोबाइल-9358195345

ई-मेल-singhsushma1952@gmail.com

प्रकाशित कृतियां-पहली किरन(काव्य संग्रह)दर्द के साये में(कहानी संग्रह)1990स्वातंत्रोत्तर हिन्दी उपन्यासों में युगबोध का अनुशीलन(शोध प्रबन्ध)1992,एक तुम्हारे साथ होने से(काव्य संग्रह)2011,कुछ तो लोग कहेंगे(कहानी संग्रह)2014,विदुषी विद्योत्तमा(हायकु खण्डकाव्य)2016,मानस के पात्र(निबंध संग्रह)2016,चंदामामा(शिशुगीत संग्रह)2018,बूंद-बूंद से घट भरे(हायकु संग्रह)2019

प्राप्त सम्मान-गांधी जन्म शताब्दी वर्ष में इण्डियन कोअॉपरेशन द्वारा 16भारतीय और 8  विदेशी भाषाओं की अन्तर्राष्ट्रीय निबंध प्रतियोगिता में प्रथम स्थान और उप राष्ट्रपति वी.वी.गिरि से पुरस्कार प्राप्त।विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ,गांधीनगर,ईशीपुर,बिहार द्वारा’विद्यासागर’और ‘भारतगौरव’ की उपाधियां प्राप्त।विश्वंभरा सांस्कृतिक पीठ,शूकरक्षेत्र,सोरोंजी द्वारा’मानस मनीषी’उपाधि,पूर्वोत्तर हिन्दी अकादमी,शिलांग द्वारा’डॉ.महाराज कृष्ण जैन स्मृति सम्मान प्राप्त,उत्तर प्रदेश लेखिका समिति,आगरा-वनिता विकास ,आगरा-विचार वीथी,नागपुर-श्रीगौरीशंकर ग्राम सेवा मण्डल,बन्बई-हिन्दी प्रचार परिषद,पीलीभीत-महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा सभा,पुणे-भारतीय साहित्यकार समिति,आगरा-श्रीकृष्ण मण्डल साहित्यशील संस्था ,दिल्ली,गीता जयन्ती महोत्सव समिति,नागपुर-ग्वालियर साहित्य एवं कला परिषद्-साहित्य सरोवर,वल्लारी(कर्नाटक)-राष्ट्रभाषा स्वाभिमान न्यास,गाजियाबाद-गुगनराम एजूकेशनल-सोशल वैलफेयर सोसायटी,भिवानी-अखिल भारतीयसाहित्य संगम,उदयपुर-हिन्दी साहित्य सभा,आगरा आदि द्वारा कलम कलाधर,साहित्य गौरव,हिन्दी मनस्वी,राष्ट्रभाषा रतन,आदि उपाधियां प्रदत्त।श्री मौनतीर्थ पीठ ,उज्जैन द्वारा’विदुषी विद्योत्तमा स्त्री शक्ति सम्मान प्राप्त ।


जिन्दगी-२.खत-३.नारी शक्ति ४.एक गीत५.रावण और राम

     सांप के कैंचुल सी मैंने चाही छोढ़नी

       ज़िन्दगी जौंक सी चिपक गयी मुझसे।

दीमक लग गयी मेरे मन में

भरभरा कर गिर गयी मेरे मनसूबें की इमारत।

घुन लग गया मेरे सपनों को

धूल-धूल हो गयीं मेरी रातें ।

ग्रहण लग गया मेरे इरादों को

कागज़ की नाव साबित हुईं मेरी सारी कोशिशें।

मेरी भूख को मार गया लकवा

और मेरी प्यास हो गयी लूली लंगड़ी।

जीवन के आसमान पर छा गयी धुंध

और आ गयीं आंधियां मुसीबतों की ।

तब अंगड़ायी ली मेरी अना ने,मेरे ज़मीर ने

और ज़िन्दगी की पतंग की डोर थामी मैंने हाथों में

हौसलों के पंख लेकर मैंने उड़ान भरी 

अरमानों के आसमान में।

इच्छाओं के बीज डाले कोशिशों की धरती पर।

सफलता की फसल लहलहाने लगी

यशकी महक उड़ कर दूर दूर जाने लगी।

             डॉ़ सुषमा सिंह.आगरा





२.खत

कह रहे हो तुम

कि तुमको खत लिखूँ

खत लिखूँ ,तुमको लिखूँ

और मैं लिखूँ ?

क्या लिखूँ,कैसे लिखूँ?'

पास बैठी मैं तुम्हारे

लिख रही मनुहार का खत

लिख रही स्वीकार का खत

लिख रही इसरार का खत

लिख रही इककार का खत ।

बात कुछ रखकर तो देखो

मान लूँगी।

एक बस आवाज तो दो

आ मिलूंगी।

जब कभी अपलक निहारा है तुम्हें

एक खत पलकों ने भी मेरे लिखा है

और जब मेरे अधर हैं फड़फड़ाते

किन्तु उनसे फूटता है स्वर न कोई

एक खत तब वे भी तुमको लिख रहे हैं

और जब बोझिल पलक मेरी न उठती

एक खत वह भी तुम्हें लिख भेज देती ।

पुलक मेरे बदन की 

और आर्द्रता मेरे नयन की

लिख रही हैं खत तुम्हें, 

तुम बाँच तो लो। 

पास बैठूँ जब तुम्हारे

कुछ पिघलता है कहीं पर

रिस न जाए,चू न जाए

और कोई देख न ले

बाँच न ले खत ये मेरा और कोई

इसलिए संयम का मैं लेकर लिफाफा 

गोंद लेकर औपचारिकता का प्रियवर 

भींच लेती हूँ इसे निज मुट्ठियों में 

थाम लेता है मेरे दिल का कबूतर 

और तेरे दिलके आंगनमें 

लिए जा बैठता है ।

ले इसे ,ये खत है मेरा ।

बाँच ले,ये खत है मेरा ।।

डॉ.सुषमा सिंह




वस्तुतः दूसरी कविता लिखी,भेजती हूँ-

एक सवाल 

मर्यादा पुरुषोत्तम राम से है 

मेरा एक सवाल !

हादसे का शिकार हुई थी अहल्या 

इन्द्र की दुर्भावना से 

चंद्रमा के षड्यंत्र से 

प्रतिकार किया था उसने 

खंडित नहीं होने दिया था सतीत्व 

पहचानती थी पति के स्पर्श को

 सिंहनी सी दहाड़ी थी छद्मवेशी इन्द्र पर

 पददलित कर पलायन के लिए 

कर दिया था विवश

किन्तु उसके शौर्य पर,शक्ति पर

नहीं कर सके विश्वास गौतम 

कर दिया पतिता मान उसका परित्याग ।

तन अपवित्र हो भी जाए 

तो मन की पवित्रता का 

रखा जाना चाहिए मान ।

दंडित करना था इंद्र को 

न कि अहल्या को ।

मिलकर अहल्या से 

यही सब सोचा -समझा था न राम !

तभी तो बुलाकर गौतम को 

अहल्या से दिलायी थी क्षमा ।

तुमने भेजा था उन्हें पतिगृह !

सीता का भी बस 

स्पर्श ही किया था रावण ने

रखा था अस्पृश्य ही अशोक वाटिका में 

उसका मनोबल क्षीण करती रही थी सीता 

आ मिला था घर का भेदी विभीषण 

तभी कर सके थे  तुम रावण का संहार ।

कर के एक आम -सभा 

सीता की पवित्रका का  क्यों न दिया प्रमाण ?

क्यों किया गर्भवती सीता को निष्कासित ?

पराए घर रही सीता को स्वीकारने का अपवाद 

कलंकित कर रहा था न तुम्हें ?

तुम पतित -पावन कहलाते हो न राम 

सीता की पावनता क्यों सिद्ध न कर सके?

आख़िर क्यों ?






मधुऋतु और तुम


- [ ] तुम्हारा  जीवन में  आना ।

- [ ] कि जैसे मधु ऋतु का छाना।।

- [ ] उदासी के झरे   पत्ते।

- [ ] ख़ुशी की कोपलें आयीं।।

- [ ] उमंगों का फिर -फिर उठना ।

- [ ] लता का जैसे हरियाना ।।

- [ ] तुम्हारा जीवन में आना ।

- [ ] कि जैसे मधुऋतु का छाना।।

- [ ] अरहर अलसी सरसों मटरा 

- [ ] जैसे उठते हैं भाव नये। 

- [ ] भावना बने मन का गहना ।

- [ ] नदिया जैसा मन का बहना ।।

- [ ] तुम्हारा जीवन में आना ।

- [ ] कि जैसे मधुऋतु का छाना ।।

- [ ] लज्जा से सिमटना कभी -कभी 

- [ ] हो जाना मुखर भी अनजाने ।

- [ ] कान्हा की वंशी सा बजना

- [ ] कोकिल की तरह गाते रहना ।।

- [ ] तुम्हारा जीवन में आना ।

- [ ] कि जैसे मधुऋतु का छाना ।।

- [ ] आमों पर बौर सजे जैसे ।

- [ ] मेरा मन भी महका ऐसे ।।

- [ ] मधुऋतु में बगिया का सजना ।

- [ ] ऐसी मैं सजी तुमसे  सजना ।।

- [ ] तुम्हारा जीवन में  आना ।

- [ ]  कि जैसे मधुऋतु का छाना।।

- [ ] सार्थक लगता अपना होना ।

- [ ] परिपूर्ण हुआ मन का कोना ।।

- [ ] फूलों का महक लुटाना ।

- [ ] खुशियों का रंग ज़माना ।।

- [ ] तुम्हारा जीवन में आना 

- [ ] कि जैसे मधुऋतु का छाना ।।

- [ ] जो बातें सिखायी गयी थीं

मझे जन्म से 

उन पर लगाया है मैंने प्रश्नचिह्न।

जो बातें घोली गयी थीं 

मेरे संस्कारों में

उन्हें निथार लिया है मैंने ।

जिन रंगों में रंगा गया था मुझे

धो दिया है उन्हें मैंने ।

जिन हवाओं में उढ़ाया गया था मुझे

पकड़ लिया है उन्हें मैंने ।

जिन आसमानों से रोका गया था मुझे 

छू लिया है उन्हें मैंने ।

जहाँ वर्जित था पदचिह्न बनाना मेरे लिए

वहाँ गाढ़े हैं मील के पत्थर मैंने ।

नहीं चखने थे जो स्वाद मुझे 

बढ़ा दिया है उनका जायका मैंने ।

ढका गया था मुझे जिन आवरणों से 

उनका बना दिया है परचम मैंने ।

मैं नहीं हूँ वस्तु कोई

व्यक्ति हूँ मैं ।

तस्वीर नहीं हूँ

हिस्सा नहीं हूँ पारिवारिक चित्र का

व्यक्तित्व हूँ एक संपूर्ण ।

मैं भी हूँ हाड़-माँस का एक पुतला

तुम्हारी तरह

जिसके पास है एक दिमाग

और एक दिल भी ।

जान गयी हूँ मैं बहुत कुछ

सीख गयी हूँ मैं बहुत कुछ

रंगों की असलियत

हवाओं का रुख 

आसमानों की सीमा 

धरती का विस्तार

वर्जनाओं का अर्थ 

और उनकी उपयोगिता 

आवरणों का उद्देश्य।

कभी जो सही था

यह जरूरी नहीं 

वह सही हो अब भी ।

बदल गयी हूँ मैं तो 

पर बदलना तो तुम्हें भी है 

स्वयं को

अपनी सोच को ।

मेरे लिए ही नहीं

अपने लिए भी ।

डॉ.सुषमा सिंह


काव्य रंगोली आज का सम्मानित कलमकार प्रियांजुल ओझा

 नाम - प्रियांजुल ओझा

शिक्षा- स्नातक 2017- 18(इलाहाबाद विश्वविद्यालय); परास्नातक 2019- 20  ( जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्विद्यालय), संस्कृत विषय में द्विवर्षीय डिप्लोमा, तीन बार हिंदी में नेट उत्तीर्ण

सम्मान : मणिपुर की राज्यपाल आदरणीय नज़मा हेपतुल्ला द्वारा सम्मानित , प्रसिद्ध साहित्यकार अशोक वाजपेयी के  हाथों सम्मानित , बैंक ऑफ बड़ौदा मेधावी विद्यार्थी सम्मान से सम्मानित, कोटक महिंद्रा बैंक मेधावी विद्यार्थी सम्मान से सम्मानित , पंद्रह से अधिक अंतर- विश्वविद्यालयी एवं विश्वविद्यालयी वाद - विवाद तथा भाषण प्रतियोगिताओं में स्थान अर्जित करने पर सम्मान ।

लेखन : विभिन्न पत्र- पत्रिकाओं एवं सम्प्रेषण के अन्य आभाषी पटलों पर शोध आलेख तथा कविताएँ प्रकाशित हो चुकी हैं ।

निवासी : प्रयागराज

मोबाइल नं. 7309671510



प्यार लिखूं सृंगार लिखूं 

और लिखूं अनुराग

अधराधर पल्लव से

यही था तेरा गान..

कोमल हांथों से हाथों का

वो तेरा बंधन लिखूँ

या लिखूँ कातर दुःख में मेरे

तेरा प्रथम स्पर्श एहसास

छोंड़ कर अपनी कक्षा

मिडिवल में आकर

आंखों में तुम्हे बसाना लिखूँ

या लिखूँ सिविल लाइंस का

स्कूटी वाला प्यार

इन सब स्मृतियों को तज कर

निःस्वार्थ प्रेम का मित्रता लिखूँ

या लिखूँ लड़ना 

रूठना औ मनाना

इन सबसे भी बढ़ कर ..

वो तेरा संस्कृति- संस्कार

सद्व्यवहार और परिधान लिखूँ

या लिखूँ अपना सच्चा प्रेम,

आदर्श,प्रेरणा ,साधना औ सौभाग्य ।।


©प्रियांजुल ओझा



न जाने कब वो आएगी

करवा चौथ  मनाएगी

मेहंदी माहुर चुनरी बिंदी

औ कजरारी आंख सजायेगी

चाँद का अपने प्यारा मुखड़ा देख

न जाने कब वह  मुस्काएगी

अपने  मेहंदी वाले हाँथो से

व्यंजन खूब पकाएगी

खुद निच्छलता का व्रत रखकर

मुझको बड़े प्यार से खिलाएगी

न जाने कब वो आएगी

करवा चौथ मनाएगी


@प्रियांजुल ओझा "प्रिय"



: विश्व गौरैया दिवस विशेष: 


मन गौरैया गौरैया चिल्लाए

मेरे बच्चे इनको देख न पाएं

क्या  होती  ये ?

कैसी  होती ?

शिख पर कलगी होती ?

या मोर - सा लंबा पंख होता ?

ऐसी व्याकुलता भरा

मेरे बच्चों का प्रश्न होता....

अब क्या बतलाऊँ मैं इनसे

अपने हाथों से ही उनको मारा है

कभी न दिया दाना - पानी

औ वृक्षों से भी बसेरा उजाड़ा है...

चलो क्या हुआ !

संवेदना भले मरी हो मेरी

पर स्वार्थ लिप्सा अभी भी बाकी है

इसलिए मत कर मेरे बच्चे तू चिंता

मै तुझको गौरैया दिखलाऊँगा

चाहे पिंजड़े में ही बंद करके लाऊँ

पर मैं तुझको गौरैया दिखलाऊँगा ।


           ©प्रियांजुल ओझा


काव्य रंगोली आज का सम्मानित कलमकार पंवार जोधपुर ( राजस्थान )

 परिचय

नाम:- बसन्ती पवांर 

जन्म:- 5 फरवरी, 1953 (बसन्त पंचमी), बीकानेर 

माता-पिता:- स्व. श्रीमती रूकमा देवी , स्व. श्री राणालाल 

शिक्षा:- एम. ए. (राजस्थानी भाषा), बी. एड.

व्यवसाय:-’निरामय जीवन’’ एवं ’’केन्द भारती’’ मासिक पत्रिका जोधपुर के प्रकाशन विभाग कार्या लय में 

निःशुल्क कार्यरत, रिटायर्ड वरिष्ठ अध्यापिका । 

जुड़ाव:- महिलाओं की साहित्यिक संस्था ’’सम्भावना’’ की सचिव, ’’खुसदिलान-ए-जोधपुर’’, ’‘नवोदय 

सबरंग साहित्यकार परिषद’’, ’‘लॅायंस क्लब जोधपुर’’ की सक्रिय सदस्य । 

प्रकाशन:- 1’‘सौगन‘’, 2 ’’ऐड़ौ क्यूं ?’’ (दो राजस्थानी उपन्यास), एक हिन्दी कविता संग्रह ’’कब आया

बसंत’’ । राजस्थानी कहानी संग्रह ’‘नुवाै सूरज‘’ । एक राजस्थानी कविता संग्रह-’‘जोवूं एक विस्वास’’

हिन्दी व्यंग्य संग्रह ’नाक का सवाल’, ( अंग्रेजी में अनुवाद भी )हिन्दी काव्य संग्रह ’’नन्हे अहसास’’ प्रकाशित । दो बाल साहित्य की 

पुस्तकें-राजस्थानी में एक-‘‘खुश परी’’ कहानी संग्रह एवं एक कविता संग्रह, हिन्दी उपन्यास ’प्यार की 

तलाश में प्यार’ एवं एक कहानी संग्रह प्रकाशनाधीन । 

 राजस्थानी और हिन्दी की पत्र-पत्रिकाओं में कहानी, कविता, लेख, लघुकथा, संस्मरण, पुस्तक 

समीक्षा आदि का लगातार प्रकाशन । 

 आकाशवाणी जोधपुर, जयपुर दूरदर्शन से वार्ता, कहानी, कविता आदि का प्रसारण । राजस्थानी 

भाषा के ’’आखर’’ कार्य क्रम में भागीदारी (जयपुर) 

विशेषः-राजस्थानी भाषा की पहली महिला उपन्यासकार । 

 यू ट्यूब पर ’’मैं बसंत’’ नाम से चेनल । 

पुरस्कार और सम्मान:

1. ‘राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी बीकानेर’ से ’’सौगन‘’, राजस्थानी उपन्यास पर 

’‘सावर दैया पैली पोथी पुरस्कार’’ -1998 

2. पूर्वोत्तर हिन्दी अकादमी, शिलांग मेघालय की तरफ से ’‘डा. महाराजा कृष्ण जैन स्मृति सम्मान

’’-2011 

3. तमिलनाडु हिन्दी साहित्य अकादमी चैन्नई और तमिलनाडु बहुभाष�

4 ’आकाश गंगा चेरीटेबल ट्रष्ट’ लूणकरणसर, बीकानेर से सम्मान-2011

   5.’‘नवोदय सबरंग साहित्यकार परिषद’’ जोधपुर से ’‘बेस्ट स्टोरी राइटर’’ सम्मान -2011 

   6. ’‘जगमग दीपज्योति ‘मासिक पत्रिका अलवर की तरफ से ’’श्रीमती नवनीत गांधी स्मृति’’ 

      सम्मान-2013 

   7. बैंक नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति, जोधपुर से अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर आयोज्य कवयित्री सम्मेलन में सम्मान-2014                          

   8. ’मरूगुलशन’ त्रेमासिक पत्रिका के 75 वें अंक के लोकार्पण समारोह में सम्मान-2014

   9. लाॅयनेस क्लब जोधपुर द्वारा कवयित्री सम्मेलन में सम्मान-2015

   10. ‘सर्जनात्मक संतुष्टी संस्थान ’द्वारा प्रो. प्रेम शंकर श्रीवास्तव स्मृति पर आयोज्य कार्यक्रम में मरूगुलश में प्रकाशित ’’नारी संवेदना’’ रचना पर ’’गुणवंती सम्मान’’-2015                                                                           

   11. न्यू ऋतंभरा साहित्य मंच कुम्हारी, जिला दुर्ग -छ. ग. द्वारा न्यू ऋतंभरा मुंशी प्रेमचंद एवं साहित्य 

      अलंकरण-2015 

   12. महिमा प्रकाशन -छ.ग. द्वारा ’’त्रिवेणी साहित्य सम्मान’’-2015 

   13. ‘डाॅ. नृसिंह राजपुरोहित राजस्थानी साहित्य प्रतिभा पुरस्कार’’-2016 

   14. बृजलोक साहित्य-कला-संस्कृति अकादमी, फतेहाबाद (आगरा) उ. प्र. द्वारा ’‘श्रेष्ठ साहित्य साधिका सम्मान-2017

   15. ’’वीर दुर्गादास राठौड़ सम्मान’’ (रजत पदक )-2017 

   16. ’शब्द निष्ठा सम्मान’’ (अखिल भारतीय लघुकथा प्रतियोगिता अजमेर)-2017  

   17. ’’दिव्यतूलिका साहित्यायन’’ सम्मान-2017 (ग्वालियर, मध्य प्रदेष)

   18. ’’शब्द निष्ठा सम्मान’’ (अखिल भारतीय व्यंग्य प्रतियोगिता अजमेर)-2018 

   19. ’’महादेवी वर्मा सम्मान’’(साहित्य कला एवं संस्कृति संस्थान, हल्दीघाटी नाथद्वारा)-2018

   20. ’’पत्र लेखन सम्मान’’(डाॅ. सूरज सिंह नेगी, सनातन प्रकाशन, जयपुर)-2019

   21.  साहित्य क्षेत्र में सतत् सराहनीय योगदान हेतु ’’मधेषवाद के प्र. नेता गजेन्द्रनारायण सिंह सम्मान’’ 

       (नेपाल भारत मैत्री वीरांगना फाउंडेशन, काठमांडौ रौतहट, नेपाल से)-2019

   22. ’’मत प्रेरणा सम्मान’’-2019 (निखिल पब्लिशर्स, आगरा, उत्तर प्रदेश)

   23.  राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति श्रीडूॅंगरगढ़ (बीकानेर) द्वारा ’’पं. मुखराम सिखवाल स्मृति रा. साहित्य   सृजन पुरस्कार’’ (14 सितम्बर 2019)

   24. स्टोरी मिरर द्वारा ’’लिटरेरी केप्टिन’’ सम्मान-2019

   25. ’’अखिल भारतीय माॅं की पाती बेटी के नाम’’ प्रतियोगिता-2019, सम्मान (जिला प्रसाशन एवं महिला अधिकारिता, बून्दी द्वारा)

   26. अखिल हिन्दी साहित्य सभा (अहिसास) नासिक (महाराष्ट्र) द्वारा पुस्तक-’’नाक का सवाल’’ पर ’’साहित्य श्री’’ सम्मान-2019 

   27. ’’क्रान्तिधरा अंतरष्ट्रीय साहित्य साधक सम्मान’’ (क्रान्तिधरा मेरठ, साहित्यिक महाकुम्भ-2019 में )

   28. ’’आध्यात्मिक काव्यभूषण’’ की मानद उपाधि (भारतीय संस्कृति एवं भाषा प्रचार परिषद करनाल (हरियाणा) तथा कलमपुत्र काव्य कला मंच मेरठ उ. प्र. (भारत) द्वारा हरिद्वार (उत्तराखण्ड) में आयोजित कार्यक्रम में ।

   29. ’’अग्निशखा गौरव रत्न’’ सम्मान (साहित्य एवं सामाजिक क्षेत्र में अमूल्य योगदान के लिए, अखिल भारतीय अग्निशिखा मंच मुम्बई द्वारा ) - 2019

   30. ’’मैना देवी पांड्या स्मृति राजस्थानी लेखिका पुरस्कार-2019 (नेम प्रकाशन, नागौर, डेह)

   31. ’’चौपाल साहित्य रत्न सम्मान’’-राष्ट्रीय कवि चैपाल, शाखा-दौसा (राजस्थान)-2020

   32. ’’नव सृजन कला प्रवीर्ण अवार्ड’’-छत्रपति प्रशिक्षण संस्थान (रजि.) कानपुर (उ. प्र.) द्वारा-2020

   33. ’’शब्द तरंग सम्मान - सुशील निर्मल फाउंडेशन, आणि शब्दांगण कला साहित्य सांस्कृतिक परिषद, वसई (महाराष्ट्र) द्वारा-2020

   34. शब्द निष्ठा सम्मान (श्रेष्ठ समीक्षक)-2020

   35. ’मनांजलि साहित्य सम्मान’ (मनांजलि मंच, चण्डीगढ़)-2020

   36. जैमिनी अकादमी पानीपत (हरियाणा) द्वारा-अटल रत्न सम्मान, कोरोना योद्धा रत्न सम्मान, तिरंगा सम्मान, शिक्षक उत्थान रत्न सम्मान, गोस्वामी तुलसीदास सम्मान, 2020 में 101 साहित्यकार 2020 रत्न सम्मान-2020 । स्वामी विवेकानन्द सम्मान-2021, गणतंत्र दिवस पर भारत गौरव सम्मान-2021 

   37. ’’विशिष्ट साहित्यकार सम्मान’’ अदबी उड़ान साहित्यिक संस्था द्वारा-2021

   38. ’’भामाशाह सम्मान’’ लायंस क्लब इंटरनेशनल द्वारा-2021 

   39. ’’लोक साहित्य रत्न सम्मान’ (अवनि सृजन साहित्य कला, मंच इंदौर, म.प्र. द्वारा)-2021

   40. विश्व मायड़ भाषा दिवस 21 फरवरी 2021, महाराजा मानसिंह पुस्तक प्रकाश, बाबा रामदेव शोधपीठ, राजस्थानी विभाग और इंटेक चेप्टर की ओर से सम्मान-2021 

   41. ’’हिन्दी साहित्य मनीषी’’ मानद उपाधी, साहित्य मंडल, श्रीनाथद्वारा से । 2021

                        बसन्ती पंवार

                ’विष्णु’, 90, महावीरपुरम,

               चौपासनी फनवल्र्ड के पीछ, 

               जोधपुर -342008 (राज.), 

                   मो. 9950538579     

                         Basantipanwar53@gmail.com 

                          

*धीमें*

धीमें-धीमें  

गीले ईंधन 

की तरह 

जलती नारी.....


धीमें-धीमें 

जलकर भी

वो कार्बन 

नहीं उगलती....

जीवन भर 

देती रहती है 

सभी को

ऑक्सीजन......


घर-परिवार 

के लिए 

नींव का पत्थर बन

कंगूरों की सुरक्षा....

सुन्दरता के लिए 

पूरा जीवन 

अंधेरों में गुजारती....

नहीं बनती 

वह कंगूरा.....


धूपबत्ती की

तरह जलती है 

धीमें-धीमें 

सुवास बिखेरकर 

मिटा देती 

अपना अस्तित्व.....


धीमें-धीमें 

अंतिम सांस 

लेने के बाद भी

वह हिलती 

तक नहीं.....

अपनों के  

कंधों पर 

शान से 

चलती है धीमें-धीमें.......

           बसन्ती पंवार 

      जोधपुर  ( राजस्थान )



हमने 

टूटे धागों पर

गांठें तो

खूब कस कर 

लगाई......

मगर 

खोलने वालों के 

नाख़ून 

बहुत पैने थे .....

      बसन्ती पंवार 

          जोधपुर




(कविता)  *इच्छाएं*


जीवन  के  सफर  में 

न जाने  क्यों  जन्म  लेती हैं 

चाहे  छोटी-छोटी  ही  सही 

मन  में  मचलती  तो  है......


मचलती  इच्छाएं 

और  बड़ी  हो  जाती  हैं 

किसी  लड़की  की  तरह.....


मन  को  झकझोरती  है 

अन्तर्मन  में  फैलती  है 

पर  कहां  पूरी  हो  पाती  हैं....


कभी  कोई  कुचल  देता  है

तो  कभी  हम  स्वयं  ही 

कफन  से  ढक  देती  हैं.....


कुचले  जाने  से  पहले 

कुचले  जाने  के  दर्द  से 

कितना  छटपटाती  हैं .....


कितने  आंसू  कितने  दर्द 

मासूम  मन  की  छोटी - छोटी 

चाहतें  उनकी  बेदर्दी  से  मोत

देखता  रहता  जीवन  ......


मन  कठोर  पाषाण  बन जाता 

पूछता  है  बार-बार 

क्यों  जन्म  लेती  हैं इच्छाएं......


इतनी  मीठी  इतनी  सुन्दर 

शायद  ही  कोई  इच्छा 

अपना  पूरा  जीवन  जीती  होगी 


कुछेक  मरती  है  प्रकृति  से

बाकी  तो  तड़प - तड़प  कर 

मरने  के  लिए  ही  जन्मती  हैं... 


जीवन  बेचारा  क्या  करे 

पल-पल  रिसता  जीवन 

जीवन  कहां  रह  पाता  है .... 


पहले  प्रौढ़  होता 

फिर  बुढ़ापे  के  सहारे 

अपनों  की  ओर  

निहारती  इच्छाएं ......


जीवन  में  जन्मी - पली  इच्छाएं 

उसी  के  भीतर  सिमट 

माटी  हो  जाती  हैं .......


एक  भावभीना  मन 

सारा  दर्द  

चुपचाप  सहता  रहता......


शायद  इच्छाओं  का  

दर्द  सहना  ही  भाग्य  है 

और  इच्छाओं  का  दमन 

जीवन  की  विवशता ......

             ---- बसन्ती पंवार 

            जोधपुर  ( राजस्थान )




*प्रेम*

प्रेम 

नगद या उधार.....

मृत  या  जिन्दा.....

या  प्लास्टिक  का.....

हाँ,  यह ठीक  है 

सदियों  तक  रहेगा 

न  पानी  न  खाद......

न  धूप  न  हवा 

की  जरुरत ......

धूल  जमें  झाड़  देना .....

धो  देना .......

फिर  ताज़ा 

हो  जाएगा 

मगर  क्या 

प्लास्टिक  के  प्रेम  से

अहसास  और 

संवेदनाएं  

महसूस  कर  सकोगे  ? 

       ----- बसन्ती पंवार 

        जोधपुर ( राजस्थान )



संघर्ष 

      स्वयं  को  खोजना 

      स्वयं  के  भीतर  तक

      कठिन  लगता  है 

      यह  स्वयं  से  ही  संघर्ष  है 

      ढूंढ-ढूढ  कर  बाहर        

      निकालना--

      ईर्ष्या.....द्वेष.... 

      क्रोध.....कामनाएं.....

      तेरे- मेरे  की  भावनाएं 

      तब  तक  ढूँढ़ना 

      जब  तक  कि  

      वह  सभी 

      बाहर  न  आ  जाए 

      पर....परंतु.....

      हम  स्वयं  को 

      पहचान  कर  भी 

      संघर्ष  करते  हैं 

      स्वयं  से  ही 

      हमारा  अस्तित्व 

      निरंतर  संघर्ष  है 

      अतीत  से  वर्तमान  तक 

      जन्म  से  मृत्यु  तक....

         --- बसन्ती पंवार 

         जोधपुर ( राजस्थान )


काव्य रंगोली आज का सम्मानित कलमकार डॉ. सीमा भाँति “नीति”, अमेरिका

 संक्षिप्त परिचय:

डॉ. सीमा भाँति “नीति “ , अमेरिका महाविद्यालय प्रधानाचार्या , पद से स्वेच्छिक अवकाश ग्रहण !

एम. ए., एम. एड., पीएच . डी., पी. जी. डिप्लोमा इन कम्प्यूटर साइंस !

कहानी ,कविता आलेख लेखन ,विभिन्न साझा संकलन, पत्रिकाओं में प्रकाशन !

राष्ट्रीय  एवं अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों  में सहभागिता व संचालन !

राष्ट्रीय  एवं अन्तराष्ट्रीय  पुरस्कार !

काव्य संग्रह -शीघ्र प्रकाश्य 

सम्प्रति : अध्यक्ष, नेचुरल प्रोडक्ट कम्पनी  !

स्वतंत्र लेखन ,वेबिनार: गोष्ठी   आयोजन, सहभागिता, संचालन !

      पेटिंग, हस्तकला, फूड कार्विंग, कारपेट मेकिंग, क्ले मॉडलिंग , ज्वैलरी डिज़ाइनिग, इन्टीरियर, वेस्ट मेटिरियल रीसाइक्लिंग आदि!


सम्पर्क: 

 Ph.+15516661713


#1

#विषय: समाज

#रचियत्री: डॉ. सीमा भाँति “ नीति”, अमेरिका 

#स्वरचित मौलिक रचना 


समाज वर्तमान, भूत, भविष्य का दर्पण,

सभ्यता, संस्कार, संस्कृति को अर्पण,

निरंतर पल्लवित करता रहता सुसंस्कृत,

सुसंस्कृत जन ही करते समाज को अलंकृत,

ये ही हैं जीवन्त समाज के कुबेर सशक्त स्तंभ,

अपने हुनर, कर्म से कीर्ति के नित नए लगाए खंभ।


मूल इकाई समाज की व्यक्ति से बना परिवार, 

जिसमें हो स्नेह, सामंजस्य, समरसता की बहार,

जन जो कुटुंब व समाज का अभिन्न विशेष अंग,

उसमें सद्गुण, सच्चाई के साथ कुछ बुराई के दंश,

है संवाहक कुरीति-रीति, रूढ़िवादी, विवेकपूर्ण का,

यहाँ दर्शन रीति रिवाज के नाम पर नित नये स्वाँग का।


कुरीति- दहेज, शोषण, भ्रूण हत्या, नारी व्यभिचार,

धार्मिक उन्माद, दंगा, भ्रष्टाचार, भेदभाव, दुष्कर्म,

विषबेल पोषित अब जड़ से उखाड़ करो सत्कर्म,

हर स्तर पर हो समाज सुख-समृद्ध, सशक्तिकरण,

सजृनात्मकता, हुनर प्रेरणा, स्वस्थ समाज अनुसरण,

स्वतंत्रता, दायित्व, नारी, बुजुर्ग आदि मान अंत:करण।


समाज व्यक्ति में निरंतर चलता रहे ह्रदय मंथन,

कुरीति, रूढ़िवादिता, व्यभिचार, अवगुण उन्मथन,

सद्भाव, प्रेम, सद्गुण, धर्म, जाति सबका मान उन्नयन,

स्वस्थ व्यक्ति समाज स्नेहशील बनाना प्रथम ध्येय,

“नीति” कहे संतुलित समाज, सद्गुण ओज अनुष्ठेय,

सत्त कर्तव्य पथ पर समरस समाज राष्ट्र हमारा उद्देश्य, हमारा उद्देश्य........



               डा. सीमा  भाँति “नीति”, अमेरिका 

               स्वरचित मौलिक  रचना


#2


# विषय: नन्हें दिल की एक प्यार भरी गुहार

# स्वरचित मौलिक रचना

# रचियत्री: डॉ. सीमा भाँति “नीति” , अमेरिका    


💞💔💕💔💞💔💕💔💞💔💕💔💞💔💕💔💞


एक नन्हा दिल, जो अभी इस दुनिया में ही नहीं आया,

बस उसके होने का एहसास कोख को ही हो पाया।

गुफ़्तगू माँ-बाप की सुनते ही वो बहुत  घबराया,

माँ को सकुचाता घबराता रोता देख अधिक बिचकाया।

तन्हाई पा के थोड़ा घबराते हुए इस तरह बोला, 

ये अल्ट्रसाउंड, डॉक्टर ना जाने बाबा क्या बोला।


क्यूँ कोने में बैठी सुबक सुबक रोती हो करहाती ,

क्यूँ अभी तक चुपचाप यूँ तकिया पर बिलखती।

अब मेरे ना होने के आदेश को चुपचाप करती अमल,

ओ माँ ! इतनी जल्दी क्या है मुझे करने की अलग ।

तू ही तो कहती थी बस ये है मेरा नौ महीने घर,

फिर तू आयेगा इस खलक में करने रोशन घर ।


क्या मुझसे हुई कोई गुस्ताखी तो फिर बता ना माँ,

अभी पकड़ता ‘कान’, पर कैसे? कान तो है ही नही माँ।

चाहता हूँ बात करना बाबा से भी माँ मैं , दिल ,

पर जब वो तुझ से बात नहीं करते हिलमिल।

डर लगता है, तो मैं कैसे? तू ही कुछ कर ना माँ,

अपने लिए कभी ना हुई खड़ी पर अब तो हो माँ।


मेरी ख़ातिर ही अड़ा अंगद पैर माँ, ओ मेरी प्यारी माँ,

नन्हा प्यार दिल सिसक सिसक कर के पुकारे माँ।

माँ सुन लो, दादी सुन लो, कोई तो सुन लो मेरी गुहार,

मुझे अभी ज़बरदस्ती नहीं बिलकुल नहीं आना बाहर।

नौ महीने आराम से इस गुलाबी मख़मली में रहने दो घर में,

बस मारो मत, बचाओ माँ ! आने दो साकार रूप में इस प्यारे जहाँ में, इस प्यारे जहाँ में ........ 


💞💔💕💔💞💔💕💔💞💔💕💔💞💔💕💔💞


             डॉ. सीमा भाँति “नीति” , अमेरिका    

              स्वरचित मौलिक रचना


#3


#विषय: मानवता के लाल

# स्वरचित मौलिक रचना

# रचियत्री: डॉ. सीमा भाँति “नीति” , अमेरिका 


सुनी थी पारियों ( angles) की कहानी दादी - नानी से , 

आज इस धरा पे अवतरित है करोना वोर्रीरस आसमाँ से । 

हथेली पर जान , परिवार , सब लेकर निस्वार्थ भाव से , 

फिर भी कुछ मानवता के दुश्मन खड़े हुए इस राह में स्वार्थ से ।

अब तो हो गयी हद ही अश्लीलता व उनके व्यवहार से , 

देवदूत जो करने आए थे रक्षा हमारी , पड़ गए जान के लाले उनके । 

साष्टांग प्रणाम उन माताओं को, ये निकले  जिनकी गोद से , 

“नीति”  सहित कण कण ब्रह्मांड का , नतमस्तक इनके समक्ष कृतज्ञता से । 

प्रार्थना , एकता , समर्पण मूलमंत्र केवल , एकमात्र मूलमंत्र दिल से ,

विजयी अवश्यभामि , जय हो, जय हो, ‘मानवता के लाल’ जय हो !!!


               स्वरचित मौलिक रचना

             डॉ. सीमा भाँति “नीति”, अमेरिका


काव्य रंगोली आज का सम्मानित कलमकार प्रकाश रेगर

 परिचय:-

नाम,चन्द्र प्रकाश रेगर


मो,8441039551

पता,नैनपुरिया पो,नमाना,तह,नाथद्वारा,

राजसमंद ,राजस्थान


शिक्षा:-GNM,NURSING 


अनुभव:-3years


पहली कविता प्यार अंधा है,



वृक्ष लगाओ, वृक्ष बचाओ


जीवन की क्षणभंगुरता में,

सतत बह रही इस सरिता में,

योगदान का मूल्य समझकर,

उनका भी आधार बचाओ।

वृक्ष लगाओ,वृक्ष बचाओ।


सृजन सृष्टि के आदिकाल से,

 निर्मित पूर्व मानव कपाल से,

प्राणवायु के दानी हैं जो,

उनके भी अब प्राण बचाओ।

वृक्ष लगाओ, वृक्ष बचाओ


प्राणवायु से प्राण बचायें,

फल देकर वे भूख मिटायें,

उमड़ घुमड़ते मेघ खींच लें,

ऐसे चहुं दिशि विटप बढ़ाओ।

वृक्ष लगाओ, वृक्ष बचाओ।


अपना घर आवास निहारो,

कितना है सहयोग विचारो,

तुम भी उनके सहयोगी बन,

 गली-गली विस्तार दिलाओ।

वृक्ष लगाओ, वृक्ष बचाओ


शीतल छाया के आंगन में,

चौदह वर्ष राम रहे वन में,

रोपे अपने कर कमलों जो,

उनका भी परिवार बढ़ाओ।

वृक्ष लगाओ, वृक्ष बचाओ।


अमराई श्रीराम को भायी,

फुलवारी में सीता पायी,

जिस अशोक ने शोक हरे सब,

उसका भी अब शोक हटाओ।

वृक्ष लगाओ वृक्ष बचाओ।


कृतघ्न हुए जग मानव सारे,

केवल अपना स्वार्थ संवारे,

जिनके परोपकार से है जग,

उन पर भी उपकार दिखाओ।

वृक्ष लगाओ, वृक्ष बचाओ।


🙏🏼,रावण नहीं दरिन्दों को जलाओ,🙏🏼


सत्ययुग कि बात सत्ययुग पर छौडौ,

कलयुग है भाई रावण नही दरिन्दों को पकडो,


छुआ नही कभी माँ सीता को उसे हम हर वर्ष जलाते हैं,

फिर नजाने क्यों बलात्कारी को सजा न दे पाते हैं,,


अंहकार ने रावण को अपने स्वभाव से भटकाया था,

मनुष्य वो भी था पर हवस के कारण कभी हाथ नही लगाया था,,


जिन्होंने बच्ची से भुडी नारी तक जुर्म कर डाला है,

फिर भी न जाने क्यों उस पर को अटूट फेसला आया है,


ऊस जलने वाले रावण का एक सवाल है,

मुझे छोडो,क्या बलात्कारीयौ को जलाने की औकाद है,


मेने माँ सीता को रखा अशोक वाटिकाऔ मै सुरक्षित,,

तुम बहन बेटी भी घर पर नहीं रख पाऔगे,,,


बहन बेटी भी घर पर नहीं रख पाओगे,


🙏🏼🌹क़लम की आवाज़🌹🙏🏼


कभी प्रेम लिखती है

कभी विद्रोह करती है

कभी स्वप्न बुनती है

कभी द्रवित बहती है

ढ़लती कवि रंग में

कवि जैसी रहती है

ये क़लम की आवाज़ है

यूँ ही बेहीसाब  होती है,,


हर्षित करे ये उर कभी

कभी आक्रोश भरती है

सत्य दिखला दे कभी

कभी भ्रमित करती है

तेज इसमें प्रकाश सा कभी

कभी अंधकार लिखती है

ये क़लम की आवाज़ है

यूँ ही बेहीसाब होती है,,


सम्मान लिखे नारी का कभी

कभी गाथा वीरों की लिखती है

बदल देती है सिहासन कई

जब कागज़ पर चलती है

इतिहास रच देती है नए

जब सत्य लिखती है

कभी युद्ध लिखती है 

कभी विनाश लिखती है

ये क़लम की आवाज़ है 

यूँ ही बेहिसाब होती है,,


है क़लम वो सच्ची जहाँ में

जो कवि का ह्रदय लिखती है

लिखती है वो बात समाज की

जो ना किसी के भय में रहती है

है क़लम तब तक वो बड़े काम की

जब तक ना वो पैसों में बिकती है

ये क़लम की आवाज़ है

यूँ ही बेहिसाब होती है।


 🌹🙏🏼जय किसान🙏🏼🌹


दुनिया को पेट भरवा वाला थे,

चलता री जौ रे,

आवें ला कई रोग,सकंट थे,

लडता री जौ रे,,


खेती करनी ईण जनम् मै जाणें 

शरहद पर तकियों लगा के सौणौ रे,,

दुनिया को पेट भरवा वाला थे,

चलता री जौ रे,,


खेती करवा वाला ही जाणै,

अन्न निपजाणौ या शरहद पे जा मरणौ रे,,

खुद भुखा रेवण वाला थे,दुनिया 

को पेट भरता री जौ रे,


आंदोलन मैं लडता लडता कई माता 

बहना रा सुहाग उझड गिया,

सिर पर कफ़न बाद थे,

खेती करता री जौ रे,


बीज रोपण मै  लिदौं लोन भी,

माथे पड्गियौ रे,

इंण कारणें कई किसान

 फंदौं गले लिदौ रे,,


खेती करणों वेही जाणें जौ

56,इंच री छाती राखें,

छोटा मोटा बैठ गाड़ी मै देश विदेशा मै घुमैं,

आवे सकंट जब 

देश में अन्नदाता कह वतला वें,,


खुद भुखा रेवण वाला थे,

दुनिया को पेट भरता री जौ रे,

खुद,भुखा रेवण वाला 

दुनिया को पेट भरता रीजो रै


🌹🌹प्यार मै मग्न🌹🌹


दिल से निकले शब्दों को

अक्सर पंनौ पर उतार लिया करता हूँ 

बस इस तरह अपने दिल के

दर्द को शांत कर दिया करता हूँ


तेरी खामोशी को मै अक्सर

समज ने कि कोशिश जो करता हूँ

तु भलेही दुर है मुझसे फिर भी में

अपने पास महसूस करता हूँ


तेरे हावभाव को कुछ हद तक

में समज ने में जो लगा हूँ 

बस इसी कि खोज में जो 

में निकला हूँ 


कुछ यादौ को मै फिर से 

दौहराने जो लगा हूँ

कोई हुँई तो नहीं कही भुल

हम से इसी कि खोज में लगा हूँ


शब्द के सहारे शब्दों को 

जो जोड़ने लगा हूँ

सच् बताऊ तो बितें दिनौ को 

लेकर आज फिर रोने लगा हूँ


कोई न तु खुश है जिसमें उसमें

 मै भी खुश हूँ 

बस इसी सहारे जीने लगा हूँ

तु खुश रहना बस इतनी

आराधना ईश्वर से करने लगा हूँ

काव्य रंगोली आज का सम्मानित कलमकार अरविंद 'असीम

 

1-नाम-अरविंद श्रीवास्तव
2-साहित्यिक उपनाम-अरविंद 'असीम



3-साहित्य सेवा-हिंदी व अंग्रेजी में लिखित व संपादित पुस्तकें, गाईड्स , सीरीज,ग्रामर बुक्स व हिंदी पत्रिकाएं  106 के पास ,बच्चों के लिए विद्यालय हेतु कई नाटकों का लेखन
4-पत्रिकाओं का संपादन-5 मासिक, अर्धवार्षिक,वार्षिक पत्रिकाएं
5-अभिनय-डाॅक्यूमेंट्री फिल्म 'बिटिया रानी ' में महत्वपूर्ण भूमिका  ,कई नाटकों में विद्यालय स्तर पर  अभिनय
6-आकाशवाणी के तीन केंद्रों से संबद्धता-कहानी वाचन,आलेख वाचन,काव्य पाठ
7-वीडियो एल्बम-आज का वातावरण, प्रेम के रंग (काव्य पाठ)-इंदौर व मुंबई से निर्गत
8- *सम्मान-विदेश में* (मास्को रूस, काठमांडू तथा म्यान्मार बर्मा  में) 7 सम्मान
*देश में-लोकसभा अध्यक्ष श्री* *ओमकृष्ण बिरला जी द्वारा 'साहित्य श्री ' सम्मान सहित 140 से अधिक* सम्मान ।
*महत्वपूर्ण दायित्व- अध्यक्ष-एकल अभियान परिषद जिला-दतिया,  संरक्षक-संस्कार भारती जिला-दतिया, संयोजक-मगसम दतिया जिला,*
एवं लगभग 7 अन्य साहित्यिक व समाज सेवा से संबंधित संस्थाओं में राज्य व जिला स्तरीय शीर्ष पदभार ।
विशेष-जून 2018 में *मास्को में* 2पुस्तकों का विमोचन ,जनवरी 2020 में 3 पुस्तकों का विमोचन *रंगून* (बर्मा)में सम्पन्न  ।
संपर्क-150 छोटा बाजार दतिया (म•प्र•)475661
मोबाइल-9425726907

(1)     माँ
रिश्ते- नाते जन्म जन्म के
कोई न मां से प्यारा।
मां की ममता, त्याग अलौकिक
चरणों में सुख सारा ।
          माँ की गोद में बचपन बीता
           हमें सिखाया चलना ,
           सभ्य,  नेक इंसान बनें     
           दुनियादारी में ढलना।
           जब भी हम गुमराह  हुए
            तब मां ने हमें उबारा
            रिश्ते -नाते  जन्म जन्म के
            कोई न मां से प्यारा ।
संतति पर यदि दुर्दिन आते
मां रक्षण करती ,
टकरा जाती हर बाधा से
नहीं मौत से डरती ।
जब संकट के बादल छाए
मां ने दिया सहारा
रिश्ते-नाते जन्म- जन्म के
कोई न मां से प्यारा ।
             सदा स्वप्न माँ  देखा करती
              सुखी रहे संतान,
              खुद भूखी रह,हमें खिलाती      
               संतति पर कुर्बान ।
              मां के चरणों में जन्नत सुख     
               माँ ने हमें निखारा
              रिश्ते नाते जन्म- जन्म के     
               कोई  न माँ से प्यारा।
डॉ अरविंद श्रीवास्तव 'असीम"
           (कविता)
        (2)      *कलम के अरमान*
लेखक की कलम
नहीं  कोई सामान्य कलम।
इसमें होती क्षमता अपार
और अद्भुत होते  उद्गार ।
कलम की ताकत से
कलम की हिम्मत से।
दुनिया  में क्रांति आई
लोगों में चेतना छाई ।
कलम ज्ञान- गंगा बहाती
विवेक की सुगंध फैलाती।
अगर कलम न होती
तो दुनिया अंधेर में होती ।
कौन सुनता ,
मजलूमों  की आवाज
मजदूर रहता दुखी, मोहताज ।
तो आइए कलम उठाएं
अपनी क्षमता  जगाएं।
लिख डालें पैरों के छालों पर
जवानी में पिचके गालों पर।
सूखे होठों और भूखे पेटों पर
बेरोजगार मजदूर बेटों पर ।
शोषण की शिकार महिलाओं पर
सड़क किनारे भूख से मरती गायों पर।
दमन और अन्याय रोकने के लिए
अंधकार से मुकाबला करने के लिए।
मित्रों !कलम के पूर्ण होंगे अरमान
कलम का बढ़ जाएगा सम्मान ।
*डॉ अरविंद श्रीवास्तव 'असीम'*
   (3)     *कविता (खुशी)*
मैंने अनवरत श्रम किया
कठिन जीवन जिया।
  वांछित सफलता पाई
पर वह नहीं मिल पाई ।
जीवन में नाम कमाया
पर्याप्त सम्मान पाया ।
फिर भी थी जिसकी तलाश
वह नहीं मिल पाई ।
यह बात समझ नहीं आई ।
पर एक दिन
जब एक गिरते को उठाया
बीमार को अस्पताल पहुंचाया ।
एक रोते हुए को हंसाया
भूले -भटके को रास्ता दिखाया।
एक भूखे को भोजन कराया
प्यासे को पानी पिलाया ।
तो वह मुझे अनायास मिल गई
मेरे सूने मन- आंगन में उतर गई।

दरअसल खुशी मांगने से नहीं 
बांटने से मिलती है
वह पाने में नहीं,
देने में   ही मिलती है।
डॉ अरविंद श्रीवास्तव 'असीम'
  (4)   *कविता ---देश प्रेम*
देश- प्रेम के प्रवल भाव से
मन के सुंदर सुमन विहंसते।
सदा गंध अनुपम होती है
बलिदानों के पृष्ठ महकते।
            उग्रवाद, आतंक है फैला
            देश प्रेम ही इसका हल है ।
           देशभक्ति से बढ़कर, मित्रों
           दुनिया में ना कोई बल है।
सीमाओं  की रक्षा करना
इसी भावना का पोषक है ।
और वतन पर मरना-मिटना
इसी भावना का द्योतक है।
            देश प्रेम की नहीं भावना
            वह प्राणी केवल पत्थर है ।
            कौन कहेगा उसको मानव        
            वह तो पशु से भी बदतर है।
देश प्रेम के सरस भाव को
अब 'असीम' हम  स्वीकारें।
सत्य ,धर्म के बन अनुयाई
देशभक्ति को और निखारें।
    *डॉ अरविंद श्रीवास्तव 'असीम'*      
         150 छोटा बाजार दतिया     
         (मध्यप्रदेश) 475661
        मोबाइल 9425726907

(5)   *क्यों रोता है तू*
चिंतन कभी-कभी
चिंता में क्यों होता है तू
देख दशा दुनियादारी की
क्यों रोता है तू ।

आपाधापी ,धन लोलुपता
शांति नहीं अब दिखती
उसकी चादर क्यों उजली
रह -रह कर बात खटकती
बीज अशांति के निज मन में
क्यों बोता है तू।
चिंतन कभी ••••••••

आंगन कुछ व्याकुल सा
दिखती देहरी डरी हुई
भाई -भाई में दरके रिश्ते
बंदूके भरी हुई
संबंधों में आई दरार
क्यों नेत्र भिगोता  है तू
चिंतन कभी •••••••‌

  सोच और करनी में
थोड़ा अंतर रहता है
अच्छा करने वाला भी
कष्टों को सहता है
गलत सोच रख
दुख सागर में
नाव डुबोता  है तू।
चिंतन कभी •••••••
डाॅ• अरविंद श्रीवास्तव 'असीम'
150,छोटा बाजार दतिया (मध्यप्रदेश)475661
मोबाइल-9425726907

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