अर्चना कटारे शहडोल (म.प्र) बस इतना मांगतीं हूँ। कविता
मेरी पूजा हिन्दुस्तान
मेरा धर्म हिन्दुस्तान
मेरा देश रहे महान
बस इतना मांगती हूँ...
मेरे झंडे की रहे ऊँची शान
इस पर तन मन है कुर्बान
इसकी छटा बिखेरे ज्ञान
बस इतना मांगती हूँ....
सब धर्मों की रहे आन
सभी का मरम एक समान
फिर क्यों लडे इंसान
सभी में हो प्रेम समान
बस इतना मांगती हूं....
राजनीति के दांव पैंच मे
शिक्षा संस्थान क्षेत्र में
ऊँच नीच के भेद भाव में
हर कोई न रहे परेशान
बस इतना मांगती हूँ
न आतंकी हमला हो
न ही कोई दंगा हो
होवे राष्ट्र का गान
बस इतना मांगती हूँ
न ही भारत के टुकडे हों
न ही खून से लतपथ चिथड़े हों
रहे अमन शाँति का ध्यान
बस इतना मांगती हुँ
हर नारी का रहे स्वाभिमान
जिन पर करें हम अभिमान
उनका होता रहे उत्थान
बस इतना मांगती हूँ
न सूखा न पाला हो
खेतों में हीरा सोना हो
किसान न दुखियारा हो
बस इतना मांगतीं हुँ
चारो ओर हरियाली हो
कोयल गौरैयों की कूकें हो
नयी नयी पेडों की कोपल हों
बस इतना मांगतीं हूँ
बडे बूढों कि सम्मान हो
भूंखा न कोई इंसान हो
बेबश न कोई लाचार हो
बस इतना मांगतीं हूँ
हिमालय की आपनी शान रहे
समुद्ररों की अपनी आन रहे
जंगलो में अपनी जान रहे
बस इतना मांगतीं हूँ
न कोई राकेट मिशाइल चले
न बम धमाके हों
न ही युद्ध का बिगुल बजे
अमन शाँति के वातावरण में
मेरा हिन्दुस्तान रहे
रहे तिरंगा हर हाथों में
और इंकलाब की बोली हो
हर बच्चा बच्चा बोले
भारत माता की जय हो
बस इतना चाहती हूँ
बस इतना मांगतीं हूँ
अर्चना कटारे
शहडोल (म.प्र)
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