डा० भारती वर्मा बौड़ाई
रे मानव!
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अन्याय
होता देख
मूर्ति से बने
खड़े तो न रहो
ठंडे हो चुके
रक्त में उफान ला
न्याय के लिए
आगे तो बढ़ो,
ऐसा न हो
अकर्मण्यता देख
मूर्तियाँ खो बैठे
अपना आपा
और पिल पड़े
तुम्हीं पर सुधारने को
तुम्हें!
कुछ सोच तो
रे! अकर्मण्य मानव!
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डा० भारती वर्मा बौड़ाई
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