मंगल हो संक्रान्ति यह
मकरसंक्रान्ति नववर्ष का , सुन्दरतम त्यौहार।
करूँ प्रणाम श्रद्धासुमन, शान्ति खुशी उपहार।।१।।
हरित भरित धनधान्य से , आनंदित मुस्कान।
कर प्रेमगंग स्नान हम , झूमे मस्ती गान।।२।।
स्वयं दान निज राष्ट्र पर , मातु पिता सम्मान।
बनें शक्ति माँ भारती , खुशियाँ दें इन्सान।।३।।
खा गुड़ अक्षत तील को ,मातु पिता आशीष।
तिलकुट दधि पोहा सुबह,दान करें नत शीश।।४।।
जले लोहड़ी दहशती, बिहू नृत्य उमंग।
खिले कृषक मुस्कान मुख,रंक गेह सुखरंग ।।५।।
शिक्षा का आलोक जग,हरे मूढ़ तम स्वार्थ।
पोंगल मोपुर हैं विविध , बने पर्व परमार्थ।।६।।
वैज्ञानिक व सनातनी , मकर राशि रवि भान।
खुशी शान्ति समरस सुखी , सब समान उत्थान।।७।।
मिलें साथ निष्पाप मन , मिटे सकल जग भ्रान्ति।
सत्यरथी चल राष्ट्रपथ , अर्थ पर्व संक्रान्ति।।८।।
माने निज उन्नति वतन , सबल सुखद चहुँओर।
खिचड़ी सम समरस बने,जन जीवन हो भोर।।९।।
मंगल हो संक्रान्ति यह,भारत हो सुखधाम।
रहे शान्ति,दहशत मिटे , स्वच्छ प्रकृति अभिराम।।१०।।
रहें स्वस्थ जनता वतन, हों कर्मठ इन्सान।
हों उदार ईमान पथ , बनें राष्ट्र वरदान।।११।।
कवि निकुंज शुभकामना , मिले खुशी नवनीत ।
मिटे वैर दुर्भाव मन ,जन गण हो नवप्रीत।१२।।
कवि डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचनाः मौलिक(स्वरचित)
नवदेहली
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