सुनीता असीम
यहाँ सबके बने प्यारे मकाँ हैं।
मुहब्बत है कहीं और तल्खियाँ हैं।
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बुराई की जिन्हें आदत रही हो।
वहीं उनकी बुरी बीमारियाँ हैं।
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जहाँ होता दखल मां बाप का बस।
सदा टूटी वहीं पर शादियां हैं।
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नियत होती बुरी है आदमी की।
निशाना सिर्फ होतीं लडकियाँ हैं।
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अकेला वो नहीं बेशक गगन में।
वहाँ पर तो हजारों आसमां हैं।
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सुनीता असीम
२४/१/२०२०
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