कैलाश , दुबे , होशंगाबाद मुक्तक तन्हाइयों से होकर हम

कैलाश , दुबे , होशंगाबाद मुक्तक


तन्हाइयों से होकर हम भी गुजर रहे हैं ,


कटते नहीं अब तन्हा दिन पर रातें गुजर रही हैं ,


काटें तो वक्त कैसे बस आग सी सुलग रही है ,


देखते हैं बस चँदा और तारे गिन रहे हैं ,


कैलाश , दुबे ,


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