लघुकथा
दिनाँक 14/ 2/ 2019
*चलो लौट चले*
चलों ना आज छत पर जा कर पहले की तरह पतंग उड़ाते हैं, सुधा ने दिवाकर से जिद करते हुए कहा तो अनमना सा दिवाकर बोला, क्या बच्चों वाली बात करती हो उम्र देखी है अपनी।
सुधा हल्की सी मुस्कुरा कर बोली बच्चों की शादी करदी सब अपने में व्यस्त हैं तो हम भी आज मकर संक्रांति शादी के साल वाली ही मनाते हैं ना ।
मैं चरखी पकड़ूंगी और तुम डोर फिर देतेहैं अपने पंख खोल और उडाते है मजबूत इरादों के संग अपनी प्यार की डोर ऊंची बहुत ऊंची आसमान से भी ऊंची ।
दिवाकर ने दरवाजा खोला सुधा बोली कहाँ चले मेरे हीरो।
दिवाकर शरारत से मुस्कुराये और बोले पतंग,डोर लेने।
निशा"अतुल्य"
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