इक मतला दो शेर
ये मोहब्बत इतनी भी आसान नही थी।
इसकी हमकों भी पूरी पहचान नही थी।
अब तो मानूँगा सारी ग़लती मेरी हैं।
वैसे वो भी तो इतनी नादान नही थी।
ठीक ज़रा भी होता ये दर्द ए दिल जिससे।
उस नुस्ख़े की भी कोई दूकान नही थी।
अवनीश त्रिवेदी "अभय"
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