बसंत आशा त्रिपाठी डीपीओ *विपुल* मधु ऋतु सहज मृदुल मतवाली,

आशा त्रिपाठी *विपुल*


मधु ऋतु सहज मृदुल मतवाली,
*वसन्त की हर छ्टा निराली*।।
हरित धरा चुनर भई धानी,
प्रकृति पूजन की बेलि सुहानी।
सिहर रही वसुधा रह-रहकर,
यौवन सुरभित सौरभ आली।।
*वसन्त की हर छ्टा निराली*।।
नूतन किसलय नवल आरती,
बासन्ती धरे रुप भारती।।
मोद-मधुर पूरित परिमल नव,
विपुल धरा करती रखवाली।
*वसन्त की हर छ्टा निराली*।।
छवि विभावरी नवल रस गागर
हर्षित जल-थल सरसित सागर।
मधुरिम पवन मकरन्द सुवासित
पुलकित नभ वन डाली- डाली।।
*वसन्त की हर छ्टा निराली*।।
बोराई अमवा की डाली,
खेतों में गेहूँ की बाली।
कृषक हृदय उल्लास परम भव,
सरसों महक रही मतवाली।
*वसन्त की हर छ्टा निराली*।।
चन्द्र -छ्टा छवि अनमोल।
कोयल कूक रही रस घोल।
छाई शरद रजत मुस्कान।
अभिभव अमिय सहज खुशहाली।
*वसन्त की हर छ्टा निराली*।।
खग-कुल-कलरव मृदुल सुहावन।
पावस -सरस गरल मनभावन।
लता-सुमन- मकरन्द भार से।
हर लतिका पर छायी लाली।।
. *वसन्त की हर छ्टा निराली*।।
शाश्वत प्रकृति ,अलौकिक उपवन,
मन मयूर नॉचे मृदु तन-मन।
सरस सुमन चहुँ ओर सुवासित
मदन-वाण द्दोड़े वनमाली।
*वसन्त की हर छ्टा निराली*।।
✍आशा त्रिपाठी *विपुल*
       02-02-2020
           हरिद्वार


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