डॉ. प्रभा जैन "श्री "
देहरादून
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गगन
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हुआ भोर का आगमन
गगन यूँ मग्न हुआ,
इक कली ने घूँघट हटा
पहली बार संसार देखा।
पक्षियों ने उड़ते गगन में
बाँह खोल, ली मस्त उड़ान,
सूर्य पिघला हुआ स्वर्ण सा
आ गया ले सवारी गगन।
बैठी छत पर मैं
कैनवस पर उतार रही प्रकृति
झील में उमड़ता जल,
गगन का नीलापन
दिखा रही कैनवस पर।
पायलें गीत गुनगुनाने लगी
फूलों की पंखुरी पर,
महकने लगी
पक्षियों ने डाला डेरा,
कूँ- कूँ,ची-ची,चे-चे कलरव
धरा से गगन तक कर डाला।
हैं, प्रात :काल
गगन में ॐ ध्वनि बज रही,
आरती, दीप, सुगंध,शंखध्वनि
सब सुनाई दे रही।
मंत्रों का उच्चारण
हर घर मंदिर से हो रहा,
हर मन शान्त, ललाई लिए
चहुँ ओर नज़र आ रहा।
मन मेरा भी दौड़ लगा रहा
उड़ कर पहुँचू नील गगन में,
ऊँचाईयों को छू लूँ ।
देख आऊँ मैं गगन के पार
होता क्या ब्रह्माण्ड में,
क्या हैं वहाँ भी जीवन
हैं तो कैसा हैं जीवन।
हैं तो कैसा हैं जीवन
कितने सूरज, कितने तारे
कितने चंदा हैं हमारे,
क्या कोई कर रहा हैं इंतजार
मेरा भी आने को गगन।
बहुत मन हैं मेरा
देखूँ मैं विशाल गगन
स्वरचित
डॉ. प्रभा जैन "श्री "
देहरादून
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