डॉ सुलक्षणा अहलावत

कुपत्री औलाद


एक बार भी नहीं पूछी उसने खैरियत मेरी,
जब भी पूछी तो उसने पूछी वसीयत मेरी।
अब पछतावा होता है मुझे मेरी नादानी पर,
किसके लिए बर्बाद कर दी शख्सियत मेरी।


जिसे अपने सीने से लगाकर नाजों से पाला,
कमाकर चँद कागज पूछता है हैसियत मेरी।
देखो! एक कोने में रोती रहती है माँ उसकी,
सोचती है क्यों नहीं पूछता वो तबियत मेरी।


गलती उसकी भी नहीं है खता मुझसे हो गई,
घर सौंपकर उसे मैंने घटा ली अहमियत मेरी।
बेटी बेटी कहते जिसे थकी नहीं जुबान कभी,
उस बहु को खराब नजर आती है नीयत मेरी।


सच कहती थी "सुलक्षणा" मत ऐतबार करो,
मुझे नहीं बस वो चाहता था मिल्कियत मेरी।
पर क्या करता, पुत्र मोह में घिरा बाप था मैं,
लूट गया आशियाना, यही है असलियत मेरी।


©® डॉ सुलक्षणा


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