डॉ0 नीलम अजमेर   यादों के झरोखे से

डॉ0 नीलम अजमेर


  यादों के झरोखे से
यादों के झरोखे से
कुछ पल खिसक गये
हवाओं में खनक थी
कुछ हर्फ बिदक गये


मैं तो अंजानी ना जानी
क्यूँ मुझसे वो रुठ गये
सारी- सारी रात मैं जागी
फिर भी हाथ से छूट गये
अक्षर-अक्षर बिखरे मोती-से
मुझसे मेरे अपने ही टूट गये


यादों के झरोखे से..........


बहुत सहेज रखे थे, दिल की तिजोरी में
अनजाने में कैसे ताले खुल गये
जरा-से पट खुले रह गये तनहाई में
अनजानी सदा सुनकर निकले
फिजाओं में बिखरा मह्क सारे घुल गये


यादों के झरोखे से......


   


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