कौशल महन्त"कौशल"  *जीवन दर्शन भाग !!१८!!* ★★★

,     कौशल महन्त"कौशल"


 *जीवन दर्शन भाग !!१८!!*


★★★
चलता घुटनों पर कभी,
            कभी पसारे पैर।
नटखट निज घर में करे,
            तीन लोक की सैर।
तीन लोक की सैर,
            धूल मिट्टी में खेले,
दिखे कहीं कुछ चीज,
            पकड़ हाथों में ले ले।
कह कौशल करजोरि,
            कुमारों जैसे पलता।
हाथ मात का थाम,
            कदम डगमग डग चलता।।
★★★
माता की पहचानता,
             हर आहट हर बोल,
प्रेमिल हर आभास को,
            देखे नैनन खोल।
देखे नैनन खोल,
            कभी सपनों में रहकर।
कभी जगाये रात,
            नींद में माँ माँ कहकर।
कह कौशल करजोरि,
            दीप कुल का कहलाता।
रोता भी गलखोल,
            नहीं दिखती जब माता।
★★★
भोली सूरत देख कर,
            सब की जागे प्रीत।
बचपन सदा लुभावनी,
          यही जगत की रीत।
यही जगत की रीत,
            उम्र दिन-दिन बढ़ते हैं।
डगमग करते पाँव,
            सीढ़िया भी चढ़ते हैं।
कह कौशल करजोरि,
            सखाओं की हो टोली।
ढूंढ रहा है नैन,
            किसी की सूरत भोली।।
★★★


कौशल महन्त"कौशल"
🙏🙏🌹


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