प्रिया सिंह लखनऊ

कुछ जान बूझ कर तो कुछ अनजाने में हो गई 
बहुत शारी गलतियाँ मुझसे समझाने में हो गई 


अपनों ने एक- एक कर साथ छोड़ दिया मेरा 
मुझे बहुत देर शायद उनको मनाने में हो गई


मोहब्बत यूँ तो खुलेआम ज़हर का व्यापार है 
बहुत बड़ी ख़ता दाम उनका लगाने में हो गई 


इश्क में शब-बे-दारी तो जायज है मेरे दोस्तों  
ये क्या रात पूरी उनसे सच जताने में हो गई 


ऐसे क्यों तुम खंगालती हो रोज मय को "प्रिया"
कैसी सरेआम बेइज्ज़ती मेरी मयखाने में हो गई 


 


 


Priya singh


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