श्रीमती शशि मित्तल
बतौली सरगुजा (३६गढ़)
सपने
मैने भी बोए थे
कुछ सपने सलोने
जीवन के ठोस धरातल पे
नेह- स्नेह के जल से सींचा
प्यार रुपी खाद से पोषा
आज बना वो वटवृक्ष
बाहें फैलाए मेरे
उतर आया चौबारे
पुलकित होगा
वह भी अब तो
खुशियों की
सौगात लिए
हर डाल-डाल
पात -पात में
झलक रहा संस्कार
स्वप्न हुआ साकार
लेने लगा है आकार!
इस वसुधा की माटी पे
मैने भी......
सपनों का संसार अनोखा
ख़्वाबों का नहीं लेखा-जोखा
सपने कभी होते पूरे
कभी रह जाते अधूरे
नेक फरिश्तों से
करती हूँ आशा
पूरी करना मेरी
अभिलाषा....
परिवार बनें संस्कारवान
समाज़ का हो उत्थान
निश्छल बनो,न हो खींचतान
ऐसा हो हमारा हिंदुस्तान !!
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