स्नेहलता नीर
सजल
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जल रहा है आज ये संसार कैसे
ओस की बूँदें बनी अंगार कैसे
1
प्यार पर पहरा जमाने ने लगाया
फिर करूँ बोले प्रिये अभिसार कैसे
2
कर कड़ी मेहनत निवाले मैं जुटाता
फिर खरीदूँ मोतियों का हार कैसे
3
हर तरफ कलियुग पसारे पाँव बैठा
ईश लेंगे फिर भला अवतार कैसे
4
चीर हरता है मनुज अब नित धरा के
फिर करे ऋतुराज भी शृंगार कैसे
5
दे रही है मौत रिश्तों को निरंतर
बन गयी है अब जिह्वा तलवार कैसे
6
नीर' मैं हूँ,आग तुम फिर भी अचानक
जुड़ गए मन के हमारे तार कैसे
---स्नेहलता'नीर'
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