सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
      *"जीवन का सवेरा"*
"सूना जीवन सारा साथी,
सूख गया नेंह का डेरा।
आशाओ के अंबर में भी,
पाया न कोई सवेरा।।
 छाई गम की घटा काली,
क्यों-साथी गम से हारा?
पल पल संग चल रे साथी,
मन पा जायेगा किनारा।।
मिट जाये अंधेरे सारे,
जब होगा भोर का डेरा।
खिल उठेगी कलियाँ सारी,
महके जीवन का सबेरा।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःः
        सुनील कुमार गुप्ता


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