कविता:-
*"जीवन का सवेरा"*
"सूना जीवन सारा साथी,
सूख गया नेंह का डेरा।
आशाओ के अंबर में भी,
पाया न कोई सवेरा।।
छाई गम की घटा काली,
क्यों-साथी गम से हारा?
पल पल संग चल रे साथी,
मन पा जायेगा किनारा।।
मिट जाये अंधेरे सारे,
जब होगा भोर का डेरा।
खिल उठेगी कलियाँ सारी,
महके जीवन का सबेरा।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःः
सुनील कुमार गुप्ता
"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
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