सुनीता असीम

नाराजगी में दिख रहीं खंजर तेरी आँखें।
ससुराल में आईं नजर नैहर तेरी आँखें।
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मैं हूँ नदी में खिल रही कोमल कमलपुष्पी।
मुझको बहारों का दिखें मँजर तेरी आँखें।
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बादल भिगोता है मुझे बदली समझकर के।
मुझको बचाती हैं तभी गिरकर तेरी आँखें।
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खुद पदमिनी समझूँ तुम्हें राणा समझ लूंगी।
कूदूँ इन्हींमें मैं समझ जौहर तेरी आँखें।
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जब पास आते हो तो शहनाई बजे दिल में।
तब नेह से देखें मुझे भरकर तेरी आँखें।
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सुनीता असीम
19/2/2020


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