स्नेहलता "स्नेह" सीतापुर,सरगुजा छ.ग.

दिनाँक-5/03/2020


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ग़ज़ल
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शिक्षा को हथियार बनाना हे नारी
आँसू को अंगार बनाना हे नारी


चूड़ी कंगन तो इस तन की शोभा है
 सपनों को श्रृंगार बनाना हे नारी


साधी चुप्पी तूने लाखों जुल्म सहे
लफ़्जों को तलवार बनाना हे नारी


सारे रिश्ते काँटों के जब ताज बने
जीवन खुद गुलज़ार बनाना हे नारी


तुझमें शक्ति देवी दुर्गा काली सी
कमज़ोरी क्या यार बनाना हे नारी


अपनी रक्षा करने के तुम गुर  सीखो
मत खुद को लाचार बनाना हे नारी


तेरी तुलना गंगा यमुना से होती 
सारा जग परिवार बनाना हे नारी


स्नेहलता "स्नेह"
सीतापुर,सरगुजा छ.ग.


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