बलराम सिंह यादव धर्म एवं अध्यात्म शिक्षक

कविता की आध्यात्मिक व्याख्या


सरल कबित कीरति बिमल सोइ आदरहिं सुजान।
सहज बयर बिसराइ रिपु जो सुनि करहिं बखान।।
सो न होइ बिनु बिमल मति मोहि मति बल अति थोर।
करहु कृपा हरि जस कहउँ पुनि पुनि करउँ निहोर।।
 ।श्रीरामचरितमानस।
  चतुर पुरुष उसी कविता का आदर करते हैं जो सरल हो और जिसमें निर्मल चरित्र का वर्णन हो तथा जिसे सुनकर शत्रु भी स्वाभाविक बैर को भूलकर सराहना करने लगें।ऐसी कविता निर्मल बुद्धि के बिना सम्भव नहीं और मेरी बुद्धि का बल बहुत कम है।इसीलिए मैं आपसे बार बार निहोरा करता हूँ कि हे कवियों!आप कृपा करें,जिससे मैं प्रभुश्री हरि का वर्णन कर सकूँ।
।।जय सियाराम जय जय सियाराम।।
  भावार्थः---
  सरल कविता वह है जिसे सरलता से समझा जा सके क्योंकि कठिन और प्रभुश्री रामजी की कीर्ति से रहित कविता का सन्तजन सम्मान नहीं करते।यथा,,
भनिति बिचित्र सुकबि कृत जोऊ।
रामनाम बिनु सोह न सोऊ।।
रामनाम जस अंकित जाही।
सादर कहहिं सुनहिं बुध ताही।।
सहज बैर उसे कहते हैं जो अकारण ही होता है जैसे चूहे-बिल्ली का, सर्प-नेवले का,गौ-सिंह का आदि।जो बैर किसी कारण से होता है उसे कृत्रिम बैर कहते हैं जो उस कारण के समाप्त होने से छूट जाता है।गो0जी के मतानुसार प्रभुश्री हरि के सुयश से युक्त सरल काव्य सहज बैर को भी समाप्त कर देता है।अतः वे अन्य सभी कवियों से कृपा करने की बात करते हैं क्योंकि वे अपनी काव्यशक्ति को प्रभुश्री हरि के सुयश कथन करने के लिए पूर्ण रूप से सक्षम नहीं मानते हैं।गो0जी की इसी महान भावना ने श्रीरामचरितमानस को सम्पूर्ण विश्व में प्रशंसनीय बना दिया।निर्गुण निराकार ब्रह्म की उपासना करने वाले, अवतारवाद के कट्टर विरोधी, वैष्णव सम्प्रदाय के घोर विरोधी तथा अन्य धर्मों के मतावलंबियों को भी किसी न किसी रूप में श्रीरामचरितमानस की प्रशंसा करते हुए देखा जा सकता है।यही सहज या स्वाभाविक बैर का त्याग करना है।
।।जय राधा माधव जय कुञ्जबिहारी।।
।।जय गोपीजनबल्लभ जय गिरिवरधारी।।


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