डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"चाहत"


चाह मन में आप का ही ध्यान हो
आप से ही बात नित मनमान हो
आप की बाहें पकड़कर बोल दें
आप ही आराध्य हो भगवान हो।


दूर जाना मत कभी बस पास रह
प्रेमगंगा बन हृदय में वास कर
ख्वाहिशें पूरी कहाँ बिन आपके
आप ही स्वर-साधना की राह बन।


आप की नित वन्दना करते रहें
आपमें संवाद -लय गढ़ते रहें
आप मेरी श्वांस बनकर आइये
आपमें ही देवता दिखते रहें।


मर्मस्पर्शन बात का भण्डार हो
प्रितिदर्शन का सहज संसार हो
खोज लें हम आपको हरदम यहाँ
स्नेहवर्षण का अमित विस्तार हो।


चाहतें होतीं अधूरी सत्य है
चाह बिन हम भी अधूरे सत्य हैं
चाहतें ही जिन्दगी की नींव हैं
चाह ही संसार का कटु सत्य है।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।


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