स्वतंत्र रचना सं. २९०
दिनांकः २५.०३.२०२०
वारः बुधवार
विधाः दोहा
छन्दः मात्रिक
शीर्षकः आराधन नवरात्र का
चैत्रशुक्ल शुभ प्रतिपदा , विक्रम संवत् वर्ष।
सृष्टि सृजन प्रारब्ध दिन , हो जीवन उत्कर्ष।।१।।
प्रथम विष्णु अवतार यह, महर्षि गौतम जन्म।
आर्यसमाजी स्थापना , रामराज्य सद्धर्म।।२।।
विक्रम का राज्याभिषेक , राजतिलक रघुराम।
चैत्रमाह नवरात्र का , पुष्पित चहुँ अभिराम।।३।।
हरित भरित पादप लता , कली कुसुम नवरंग।
मादक मन रोचक सुरभि, जीवन खिले उमंग।।४।।
खिली खिली सुष्मित प्रकृति, नयासाल चहुँओर।
भरा गेह नव अन्न से , चहुँदिशि कोकिल शोर।।५।।
लखि किसान मुखहास मन,आनन्दित कविलेख।
अन्नपूर्ण माँ भारती , पुलकित मानव देख।।६।।
मादक मन अलिवृन्द का , मधुमक्खी अनुराग।
विहँसि रहे सुरभित कुसुम , चाहत पुष्प पराग।।७।।
चैत्रमास पावन दिवस , कवि निकुंज अभिलास।
रोग शोक मद मोह सब, सर्वशान्ति सुख भास।।८।।
हर कोरोना शैलपुत्रि , रामलला हर शोक।
दैहिक दैविक भौतिकी , महारोग को रोक।।९।।
महिषासुर बन कर डँटा , कोरोना फिर विश्व।
सुन्दरतम प्रमुदित धरा , खतरे में अस्तित्व।।१०।।
कवलित मुख मानव जगत , कोरोना आतंक।
त्राण करो बह्मचारिणि, हर कोरोना कोप।।११।।
तारक बन फिर अवतरित, कोरोना यह पाप।
चन्द्रघण्ट जगदम्बिका , हर तारक संताप।।१२।।
महाकाल मधुकैटभ समा, कोरोना दुर्जेय।
हर कुष्माण्डे शान्तिदे , धूमासुर इस हेय।।१३।।
स्कन्धमातु करुणामयी, कोरोना नासूर।
चण्ड मुण्ड इस कहर को , चामुण्डे कर दूर।।१४।।
रक्तबीज प्रकटित पुनः , कोरोना बन काल।
जगतारिणि कात्यायिनी , हरो दैत्य विकराल।।१५।।
कालरात्रि विकराल बन , कोरोना अभिशप्त।
रत निशुम्भ जग ग्रास को , हर दावानल तप्त।।१६।।
प्रकटित हो बहुरूपिणी , करो शुम्भ संहार।
कोराना से त्राण कर , दुर्गे दे उपहार।।१७।।
रहें दूर हम पाप से , निर्मल रह घर पूज।
सिद्धिदातृ सुख शान्ति दे , हो कोरोना दूज।।१८।।
दुर्गा दुर्गति नाशिनी , महाशक्ति जगदम्ब।
रखो स्वस्ति मानव जगत् , तू जीवन अवलम्ब।।१९।।
निकुंज दग्ध लखि वेदना , दंशित कोरोना सर्प।
कालविनाशनि कालिके , माँ कुचलो अहि दर्प।।२०।।
कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचनाः मौलिक(स्वरचित)
नई दिल्ली
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