कुमार कारनिक  (छाल, रायगढ़, छग)


      *जल/नीर*
   मनहरण घनाक्षरी
       --------------
जल   बिन  मिले  पीर,
जल  बिन   हो  अधीर,
जग   सारा  जलता  है,
      समझ भी जाईये।
💧
जीवन   दायिनी   यही,
शीतल  जो  धार  बही,
सबकी  बुझाये  प्यास,
        व्यर्थ न बहाईये।
💦
जल   बिन  सुना  जग,
कष्ट   मिले   पग - पग,
जल  से  ही  जीवन  है,
        भूल मत जाइये।

संरक्षण   करो     जल,
तभी     सुनहरा   कल,
भावी पीढ़ियों के लिए,
      जल को बचाइये।


        💧💦
                 *******


कुमार कारनिक
 (छाल, रायगढ़, छग)


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

गीत- दिन से क्या घबराना दिन तो आते जाते हैं....... दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल

गीत- दिन से क्या घबराना दिन तो आते जाते हैं....... चुप्पी  के   दिन खुशियों के दिन भीगे सपनों की बूंदों के दिन, आते जाते हैं, दि...