निशा"अतुल्य"

21.3.2020
कान्हा बने द्वारिकाधीश


कहाँ गए कान्हा छोड़ प्रेम नगरिया
बने द्वारकाधीश धर चक्र हाथ कृष्ण कनाही
मत हो उदास बोली सखी,सुन राधे बात हमारी
आएंगे तुमसे मिलने एक दिन कृष्ण मुरारी।


मोर मुकुट अभी शिश विराजे मत हो तू अधीर
तू उनके ह्रदय बसे है वो तेरी सांसो की डोर ।


माखन मिश्री अब ना भाता कर्म का पाठ पढ़ाया
बैरन मुरली तज दी उसने चक्र हाथ  घुमाया।


चल सखी जमुना के तीरे सुना उद्धव हैं आये
कुछ सन्देश भेजा कान्हा ने चल सुनले वहां पर जाय।


स्वरचित 
निशा"अतुल्य"


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