सत्यप्रकाश पाण्डेय

सौदा बनी जिंदगी जग में
सबको पड़ता है मूल्य चुकाना
सम्बन्धों में भी सौदेबाजी
जबरन पड़ रहा आज निभाना


स्वारथ के फंदे में फ़सके
हो रही स्वांसों की भी सौदेबाजी
ममता समता प्रेम वात्सल्य
को करे याराना कौंन है राजी


पति पत्नी या पिता पुत्र
सौदे कहूँ या दूँ रिश्तों का नाम
जहां न आवश्यकता पूरी
टूट रहे रिश्ते इंसान है बदनाम


हर वस्तु की खरीद फरोख्त
सौदे सामाजिक मूल्यों पै भारी
कहीं न शांति सौहार्द यहां
लगी है बड़ा बनने की बीमारी


खरीद रहे है कन्या को वर
लगा रहे है मानवता की बोली
प्यार प्रीति बिके पैसों में
मारें रोज इंसानियत को गोली


जिसके पास धन है भाई
खरीद लो जग में ऐशो आराम
हर चीज का सौदा होता
मानवता नहीं बस चाहिएं दाम।


सत्यप्रकाश पाण्डेय


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