कविता:-
*"कहाँ-नहीं हो?"*
"नित दिन भजता रहा तुमको ,
प्रभु जन जन कण कण में-
कहाँ -नही हो प्रभु?
ढूँढ़ता रहा तुम्हें प्रभु पल पल,
मंदिर मस्ज़िद गुरूद्वारें में-
कहीं न मिले तुम प्रभु।
जपता रहा तुमको मन से,
करता रहा सद्कर्म-
अर्धनिंद्रा में देखा संग हो प्रभु।
ढूँढ़ता रहा जग में तुमको प्रभु,
अब सोचता हूँ -
कहाँ- नहीं हो प्रभु तुम?
जन जन में कण कण में,
समाये प्रभु-
कहाँ-नहीं हो तुम?
ःःः सुनील कुमार गुप्ता
19-03-2020
"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
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