चित्र चिंतन:-
*"पूनम की चाँदनी"*
"पूनम की चाँदनी में साथी,
नहाया धरती -अंबर -
महका रहा उपवन सारा।
ब्रज भूमि के कण कण में,
बसे कृष्ण-
फिर भी राह देखे राधा।
राधा रानी कृष्ण दीवानी,
अँजुली भर फूलों से-
कर रही प्रेम तपस्या।
पूनम का चाँद भी इतरा रहा,
ब्रज भूमि पर चाँद-
अमृत बरसा रहा।
राधा रानी के हर साँस में
बसे कृष्ण ,
हवा का हर झोखा- अहसास करा रहा।
पूनम की चाँदनी में साथी,
नहाया धरती -अंबर-
महका रहा उपवन सारा।।"
सुनील कुमार गुप्ता
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