सुनीता असीम

चोट दिल पे तेरे पड़ी होगी।
जब रही हिज्र की घड़ी होगी।
***
जिस वजह से अलग हुए हो तुम।
बात बेहद रही बड़ी होगी।
***
जो अंगूठी पहन चुकी है वो।
वो नगों से रही जड़ी होगी।
***
धड़कनें तब ठहर गई होंगी।
जब भी उनसे नज़र लड़ी होगी।
***
दरमियाँ फासले हुए कैसे।
जोड़ती वो कड़ी -कड़ी होगी।
***
 सुनीता असीम
२८/३/२०२०


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

गीत- दिन से क्या घबराना दिन तो आते जाते हैं....... दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल

गीत- दिन से क्या घबराना दिन तो आते जाते हैं....... चुप्पी  के   दिन खुशियों के दिन भीगे सपनों की बूंदों के दिन, आते जाते हैं, दि...