हलधर

ग़ज़ल (मुक्तिका)
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(धरती दिवस पर)


धरा पर पेड़ पौधों  का सजा जो  आवरण है।
मिला नदियों से हमको स्वर्ग का वातावरण है ।।


न डालो मैल नदियों में न काटो पेड़ मानो ,
विषाणू रोग को सीधा बुलावा यह वरण है ।।


अभी जागे नहीं तो भूमि का नुकसान होगा ,
सभी  वीमारियों  का मूल  ही  पर्यावरण है ।।


सभी ये जानते तो हैं नहीं क्यों मानते हैं ,
हुआ पथ भ्रष्ट जाने क्यों हमारा आचरण है ।


बहुत नकक्षत्र हैं ब्रहम्माण्ड में पर हम कहाँ हैं ,
हमें धरती हमारी दे रही अब भी   शरण है ।


अभी कलयुग की दस्तक है धरा पै शोर देखो ,
अनौखे रोग विष कण का तभी आया चरण है ।


हिमालय क्रोध में आया बढ़ा है ताप उसका ,
हमारी  त्रुटियां  "हलधर" हमारा आमरण है ।


 हलधर -9897346173


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