चिड़िया बोली पेड़ों से
तुम भी ले लो खुल कर सांस
आक्सीजन पसर जाए
मानव के जीवन की बढ़ जाए आस
आत्म चिंतन कर ले मानव
कुदरत में तेरा अंश है जो
प्राणों में भर ले।
समीर बह रहा मंद मंद
उसको श्वासों में भर ले
परिंदों को खुलेआसमान में
बेख़ौफ़ विचरने दो
नन्ही चिड़िया को
चीं- चींं कर फुदकने दो
दाना पानी रख औसारे में
चहक- चहक चुगने दो।।
कुंती नवल
मुंबई
"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
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