संजय जैन (मुम्बई)

*निगाहें*
विधा: कविता


निगाहें बहुत कातिल है,
किसी को क्या मरोगी।
और इसका इल्जाम तुम,
न जाने किस पर डालोगी।
जबकि कातिल तुम खुद हो,
क्या तुम अपने को पहचानोगे।
और अपनी कातिल निगाहों से,
और कितनो को मरोगी।।


तेरा यौवन कितना अच्छा है,
जो सब को लुभाता है।
देख तेरे होठो की लाली,
दिलमें कमल सा खिलता है।
चलती हो लहराकर जब तुम,
दिल फूलों से खिलते है।
देखने तेरा हुस्न को यहां,
लोग इंतजार करते है।।


टूट जाएगी लोगो की आस,
जब तू किसीकी हो जाओगी।
और छोड़कर अपना घर,
उसके शहर चली जाओगी।
और चाँद सा सुंदर चेहरा,
उसके आंगन में चमकाओगी।
चाँद देखकर वो भी,
तुम से शर्मा जाएगा।
और तेरा दीवाना वो
हमेशा के लिए हो जाएगा।।


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)
30/4/2020


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