सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
       *" अतिथि"*
"अतिथि तुम अतिथि हो ,
मत आना अभी तुम-
कर न पायेगें सत्कार तुम्हारा।
अपनी और अपनो की रक्षा को,
अतिथि अभी घर में ही रहना-
सुरक्षित रहना होगा उपकार तुम्हारा।
कुछ दिनों की बात हैं साथी,
बदलेगे हालात-
मिलन होगा हमारा तुम्हारा।
दूर रहकर भी साथ है ,
मिलन की रहे आस -
हृदय हो प्रभु वास तुम्हारे।
सत्य है साथी अतिथि देव तुल्य,
देवत्य की खातिर.ही -
घर में रहना जरूरी अतिथि तुम्हारा।
अतिथि तुम अतिथि हो,
मत आना अभी तुम-
कर न पायेगे सत्कार तुम्हारा।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःः        सुनील कुमार गुप्ता
sunilgupta.abliq.in
ःःःःःःःःःःःःःःःः
        29-04-2020


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