कविता:-
*"माँ"*
"दुनियाँ में नित-दिन देता रहे,
तुझे दुआएं पल-पल-
माँ जैसा कोई नहीं।
देखे जब भी तुझको,
खिलाएं पकवान-
माँ जैसा कोई नही।
छाए न कभी गम की बदली,
देती रहे आशीष-
माँ जैसा कोई नही।
मिलती जो शीतल छाँव,
माँ के आँचल सा-
कही कोई नही।
खुशियों से महके घर आँगन,
छाये मधुमास देती आशीष-
माँ जैसा कोई नहीं।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःःः सुनील कुमार गुप्ता
sunilgupta.
ःःःःःःःःःःःःःःःःः 19-04-2020
"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
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