मिलन का भी जरिया दिखाई न दे।
किसी को खुदा वो जुदाई न दे।
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कोई खुशी नहीं हो जबावों से जब।
तो ऐसे जने को सफाई न दे।
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जो आंखों पे पर्दा पड़ा झूठ का।
उसे सच का चहरा दिखाई न दे।
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फरेबों से रिश्ता भरा जो रहे।
मुहब्बत की उसको दुहाई न दे।
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बड़ा बेरहम जो रहा हो उसे।
रहम की गुजारिश सुनाई न दे।
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सुनीता असीम
20/4/2020
"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
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