सुनीता असीम 

चाहत में तेरी नाम ये बदनाम ही तो है।
सर पर मेरे जो है लगा इल्जाम ही तो है।
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इक बार जो देखे हमें कुछ मुस्करा के तू।
अरमान पूरे हो गए .....आराम ही तो है।
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मैं इश्क का दूँ नाम अपनी इस मुहब्बत को।
दुनिया की नज़रों में मगर असकाम् ही तो है।
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करता रहूं बेशक मुहब्बत उम्र भर उससे।।
ये आशिकी मेरी रही    निष्काम ही तो है।
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तूने कबूली जो मुहब्बत क्या कहूं फिर मैं।
तेरी पनाहों में मिला     इकराम ही तो है।
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सुनीता असीम 
२९/४/२०२०


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