मधु शंखधर स्वतंत्र प्रयागराज

*लोकगीत....*


सूरतिया निहार पिया बलि -बलि जाऊँ।
 मैं बलि बलि जाऊँ.....।
चंदा कहूँ या तोहे सूरज बोलाऊँ।
मैं बलि - बलि जाऊँ।।


श्याम सलोने सी सूरतिया पाई।
मोहक से नैना मा दुनिया बसाई।
एही नैनन मा बहुत सुख पाऊँ।
मैं बलि- बलि जाऊँ।
सूरतिया निहार............।।


अधरन कै लाली पिया बहु सोहै।
घुँघराले काले केश मन मोहै।
अँगुरी से उलझी लटे सुलझाऊँ।
मैं बलि- बलि जाऊँ।
सूरतिया निहार.................।।


 तोहरी सूरत का मन मा बसाउब।
सबकी नजरिया से तोहका बचाउब।
कजला लगाइ नजर से बचाऊँ।
मैं बलि- बलि जाऊँ।
सूरतिया निहार.................।।


कान्हा मैं मुरली की धुन सुन आई।
राधा सी तोहके हिया में बसाई।
तोहरी पीरितिया में सुध बिसराऊँ।
मैं बलि बलि जाऊँ।
सूरतिया निहार................।।
*मधु शंखधर स्वतंत्र*
*प्रयागराज*


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