दयानन्द त्रिपाठी* महराजगंज, उत्तर प्रदेश।

*यूँ ही मन को फुसलाया करता हूँ.....*


 


जीवन में आपाधापी है


संकट है मन पापी है।


 


बैठ घोर तम में सोचा करता हूँ


मन में द्वंद चलाया करता हूँ


यूँ ही मन को फुसलाया करता हूँ।


 


शूल बड़े हैं जीवन की राहों में


कंटक हैं प्रतिपल बाहों में।


 


निर्मम छाया से टकराता हूँ


नयनों के मृदुल खारे जल से


पावन हो जाया करता हूँ


यूँ ही मन को फुसलाया करता हूँ।


 


मैं अकिंचन जीवन पथ में 


प्राण निछावर करने आया हूँ।


 


बीते पलछिन को भुलाया करता हूँ


उर के घातों को समझाया करता हूँ।


यूँ ही मन को फुसलाया करता हूँ।


 


 


*रचना - दयानन्द त्रिपाठी*


महराजगंज, उत्तर प्रदेश।


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