दयानन्द_त्रिपाठी_व्याकुल*

*भारत_वीरों_को_अश्रुपूरित_श्रद्धांजलि_समर्पित*


 


सीमाएं जब जल उठती हैं,


तो मानव का ही ह्रास होता है


एक दूसरे देशों के जनमानस में


घोर तनाव बढ़ जाता है।


 


करने दो जो वे करते हैं


अब सम्भव नहीं सुहाता है


आँख दिखाये कोई भी


तो चीर-फाड़ हो जाता है।


 


बीस जवानों के लहू के बदले


कई सौ को मार गिराना होगा


एक इंच भी सीमाएं खिसकाईं हैं


तो किमी में सीमा बढ़ाना होगा।


 


निर्धारित सीमाओं के बदले 


युद्धों में आ जाना ठीक नहीं


देशों का अनाधिकृत चेष्ठा रखना


जन जीवन के लिए ठीक नहीं।


 


जब सबकी सीमाएं निर्दिष्ट हैं


तो रोज बिगुल क्यों बजाते हैं


क्या सीमाएं जीवित मानव हैं


जो प्रतिदिन खीस जाते हैं।


 


ऐसा देशों में क्या होता है


सीमाओं पर जवान मारे जाते हैं


कुटिल देश ही जन को भ्रमित कर


युद्ध का प्रदर्शन कर दिखाते हैं।


 


हम राम-कृष्ण सा जीवन जीने वाले हैं


बढ़े आतंक से लंका जलाये जाते है


यदि फिर भी समझ नहीं पाते हो


तो घुस लंका में रावण भी मारे जाते हैं।


 


मौलिक रचना:-


*दयानन्द_त्रिपाठी_व्याकुल*


महराजगंज, उत्तर प्रदेश ।


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