डॉ0हरि नाथ मिश्र

*गीत*(पावस-आगमन16/14लावणी छंद)


थलचर-नभचर सब हैं व्याकुल,


कहीं न मिलती छाया है।


अब पुनि सबकी प्यास बुझाने-


रिम-झिम पावस आया है।।


 


खुशियों की सौगात लिए यह,


सबकी झोली भरता है।


करता नहीं निराश किसी को,


मगन-मुदित यह करता है।


जहाँ देखिए उछल-कूद है-


सबने जीवन पाया है।।रिम-झिम पावस....


 


बरखा रानी भरती रहती,


महि-आँचल जल बूँदों से।


पौध अंकुरित होने लगते,


पावस बदन पसीनों से।


हरी-हरी घासों ने देखो-


अब कैसा मुस्काया है।।रिम-झिम पावस......


 


हलधर परम मुदित हो-हो कर,


जाते खेत-सिवानों में।


निज थाती को सौंप अवनि को,


रहें उच्च अरमानों में।


झम-झम पड़तीं जल-बूँदों ने-


चित-मन को हर्षाया है।।रिम-झिम पावस......


 


गोरी पेंग बढ़ाकर झूले,


झूला-कजरी-योग भला।


पावस की मदमस्त फुहारें,


और बढ़ा दें विरह-बला।


निरख बदन निज भींगा-भींगा-


 गोरी-मन शरमाया है।।रिम-झिम पावस........


 


प्रकृति कामिनी महि की शोभा,


प्रेम-भाव-उल्लास भरे।


अति नूतन परिधान पहनकर,


 मन को नहीं निराश करे।


लगे सभी को पावस ने ही-


चादर हरी बिछाया है।।रिम-झिम पावस..........।।


           ©डॉ0हरि नाथ मिश्र


              9919446372


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