😌😌 दो जून की रोटी 😌😌
किस्मत वालों को ही मिलती,
दो जून की रोटी।
उन्हें नसीब न होती भैया,
जिनकी किस्मत खोटी।
इसकी ख़ातिर भटके दर-दर,
जाएॅ॑ देश-विदेश।
यही जन्म-भूमि छुड़वाती,
ले जाए परदेश।
यही है करती उनके संग,
रहने को मजबूर।
जिनसे चाहें हम सब हरदम,
रहना कोसों दूर।
झूठे को सच्चा कहने को,
यही करे मजबूर।
जो दोषी उसको कहते हम,
इसका नहीं कुसूर।
इसकी ख़ातिर जाने क्या-क्या,
करना पड़ता है यार।
यही कराती है बहुतों से,
कोठे पर व्यापार।
दो जून की रोटी का है,
दीवाना जग सारा।
इसने ही तो कईयों को है,
बे-मौत ही मारा।
वहा पसीना खाना भैया,
दो जून की रोटी।
चाहे हो वो रूखी- सुखी,
या संग हो बोटी।
।। राजेंद्र रायपुरी।।
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