सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-


       *"अकेला"*


"माना होता जो मन मेरा,


यहाँ देखता जग का मेला।


रहता न यूँही पल-पल मैं,


क्यों-अपनो संग अकेला?


पल-पल सोच रहा मन साथी,


कैसा -ये दुनियाँ का मेला?


अपना-अपना कहता साथी,


फिर भी रहता यहाँ अकेला।।


छाये न नफरत मन में साथी,


इतना तो होता मन उजला।


साध लेता जो मन साथी,


यहाँ रहता न फिर अकेला।।"


ःःःःःःःःःःःःःःःःः सुनील कुमार गुप्ता


sunilgupta


ःःःःःःःःःःःःःःःःः 03-06-2020


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