सुषमा दीक्षित शुक्ला

जल के बिना न जीवन है


 


जल ही तो जीवन है यारों ,


सूक्ति सुनी ये होगी ।


जलमय ही शरीर मानव का,


 मुक्ति इसी से होगी ।


 इंद्रदेव अरु वरुण देव भी ,


जलमय रूप दिखाते ।


 नदिया, सागर ,बरखा ,झरने ,


जल के स्रोत कहाते ।


जल के कितने रूप निराले ,


जल के बिना न जीवन है ।


अमृत बनता विष बन जाता ,


बन जाता ये दर्पन है ।


जल में भोजन मत्स्य रूप में ,


और कई फसलें होती ।


जल में खिलता पुष्प पद्म का,


 जल से ही आंखे रोती ।


 बिना नीर के जीवन कैसा 


सत्य बात है मीत यही ।


 धरती से अंबर तक फैला ,


नदिया का संगीत यही ।


विमल सलिल हम सबका जीवन,


 इसको मत बर्बाद करो ।


वृक्ष उगाओ धरा बचाओ,


 जनजीवन आबाद करो ।


 



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