*"मैं वियोग श्रृंगार"* (सरसी छंद गीत)
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विधान - १६ + ११ = २७ मात्रा प्रति पद, पदांत Sl, चार चरण, युगल चरण तुकांतता।
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¶सावन आया बादल छाया, रिमझिम पड़े फुहार।
तन सरसाया मन अकुलाया, हिय पिय करे पुकार।।
चैन न आया जिया जलाया, प्रबल वियोग-प्रहार।
तन सरसाया मन अकुलाया, हिय पिय करे पुकार।।
¶कब आओगे सुध लाओगे? राह तकूँ मैं द्वार।
जब आओगे तब आओगे, जोबन लागे भार।।
बतलाओगे पहनाओगे, बाहों का कब हार?
तन सरसाया मन अकुलाया, हिय पिय करे पुकार।।
¶महकाओगे चहकाओगे, बोलो कब गुलजार?
सरसाओगे दहकाओगे, कब मैं पाऊँ प्यार?
तरसाओगे या आओगे? सूना मम संसार।
तन सरसाया मन अकुलाया, हिय पिय करे पुकार।।
¶पिय पर वारी सखियाँ प्यारी, झूलें झूला डार।
मैं दुखियारी किस्मत-कारी, दिल पाये न करार।।
भूले सारी कसम हमारी, साजन कर इकरार।
तन सरसाया मन अकुलाया, हिय पिय करे पुकार।।
¶करवट बदलूँ पलटत दहलूँ, हुई नींद से रार।
इत उत टहलूँ मैं हाथ मलूँ, पुरवा बहे बयार।।
कैसे दम लूँ कैसे बहलूँ? काटे कष्ट-कटार।
तन सरसाया मन अकुलाया, हिय पिय करे पुकार।।
¶बरखा रानी पावस पानी, करे धरा शृंगार।
कब है धानी चुनर सुहानी, लाओगे भरतार??
मैं दीवानी रुत मस्तानी, चढ़ा प्रीति का ज्वार।
तन सरसाया मन अकुलाया, हिय पिय करे पुकार।।
¶मन को पागूँ भ्रम में भागूँ, कर सोलह शृंगार।
विरहा रागूँ दामन दागूँ, हर शृंगार उतार।।
'नायक' जागूँ मूरत लागूँ, 'मैं वियोग शृंगार।'
तन सरसाया मन अकुलाया, हिय पिय करे पुकार।।
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भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह,रायगढ़,(छ.ग.)
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