सुषमा दीक्षित शुक्ला

अब ना सखी मोहे सावन सुहाए


 


अब ना सखी मोहे सावन सुहाए


 अब ना सखी मोरा मन मचलाये।


 अब तो सही मोहे पिया बिसराए।


 अब तो सखी मोहे रिमझिम जलाये ।


 अब नहीं करते पिया मीठी बतियाँ ।


अब नहीं सावन गाती हैं सखियां।


 कोई उमंग सखी मन में ना आए।


 अब तो सखी मोहे पिया बिसराये ।


अब ना सखी मोहे सावन सुहाए ।


 बिरहा की अग्नी में हियरा जले है


 कब से ना उनसे नयना मिले हैं ।


 अब ना पिया मोहे गरवा लगाए।


 अब तो सखी मोहे रिमझिम जलाये ।


अब ना सखी मोहे सावन सुहाए ।


 मोरे पिया का ऐसा था मुखड़ा।


 धरती पे आया हो चाँद का टुकड़ा।


 जैसे अनंगों ने रूप सजाए।


अब तो सखी मोहे रिमझिम जलाये ।


 अब ना तरंगो ने दामन भिगाये 


अब ना सखी मोहे सावन सुहाए ।


अब तो सखी मोहे पिया बिसराये।


 



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