अमित अग्रवाल

आजादी का पर्व अनूठा, जीवन में ऐसा आया..


बिन बेड़ी के बंधे हुए हैं, कैसी अजब रची माया..


 


काम धाम सब बंद पड़े हैं, लेकिन खर्चे थमे नहीं..


घर में खाली बैठे बैठे, मन भी बिल्कुल लगे नहीं..


 


मेल जोल के छीन गये मौके, रूखे हैं त्यौहार सभी..


पीहर आने की चाहत में, बहनें हैं लाचार सभी..


 


घर से बाहर जाने का तो, सपना भी बेमानी है..


खुद ही हैं मेहमान हमीं, खुद की ही मेजबानी है..


 


ऐसी विकट समस्या में हम, कैसे हर्ष मनाएंगे..


कैसे अब जयघोष करेंगे, कैसे ध्वज फहराएंगे..


 


बिन बच्चों के गली में कैसे, जुलूस निकाला जाएगा..


तुतलाती बोली में वंदन, कोई नहीं सुन पाएगा..


 


श्वास भी अब तो लगती मुश्किल, कैसे गौरव गान करें..


नम आंखों से आजादी का, कैसे हम गुणगान करें..


 


जब तक सर पर बना है खतरा, कोरोना की व्याधि का..


तुम ही बताओ कैसे लिख दूं, गीत नया आजादी का..


 


अमित अग्रवाल 'मीत'


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