राजेंद्र रायपुरी

धन्य अपनी धूल माटी, 


                    वीर जन्में हैं जहाॅ॑। 


धूल माटी यार ऐसी,


                   और बोलो है कहाॅ॑।


इस धरा पर राम जन्मे, 


               इस धरा पर कृष्ण भी। 


इस धरा पर जन्म लें हम, 


                      देव चाहें ये सभी।


 


है हिमालय ताज जिसका, 


                   है धरा अपनी वही।


और गंगा धार भी है, 


                 इस धरा पर ही बही।


कौन चाहेगा नहीं मैं,


                इस धरा पर जन्म लूॅ॑। 


और सेवा में इसी के,


                  प्राण अपने त्याग दूॅ॑।


 


धूल - धरती ये हमारी,


                  स्वर्ग से कम है नहीं।


देव दुर्लभ वेद गीता,


                   और रामायण यहीं।


इस धरा की धूल चंदन,


                    आइए टीका करें।


इस धरा में क्या नहीं है,


                  आइए झोली भरें।


 


               ।। राजेंद्र रायपुरी।।


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