संजय जैन (मुम्बई)

*कार्यशाला से सेवानिवृती* 


विधा : कविता


 


कर्मशाला से विदाई का


अब समय आ गया।


तो दिल की धड़कने 


बहुत तेजी हो गई।


और अपनो के प्यार के लिए,


दिल बहुत तड़पने लगा।


साथ जिनके काम किया,


अब उनसे विदा ले रहा हूँ।


और अपनी नई जिंदगी में


प्रवेश करने जा रहा हूँ।।


 


कितना उतार चढ़ाव भरा रहा,


मेरा कार्य क्षैत्र का सफर।


कितने पराये अपने बने,


और कितने अपने रूठ गये।


जो रूठे वो अपने थे,


जो पराये थे वो अपने बने।


क्योंकि सफर जिंदगी का,


इसी तरह से चलता है।


जिसके चलते कर्मशाला से,


मेरे सफर का अंत हो गया।।


 


सीने में कुछ राज अब हमेशा के लिए दफन हो गये।


और नई सोच के साथ


नई जिंदगी का उदय हो गया।


और उनकी साजिशों का,


आज पर्दाफाश हो गया।


और हमको संभालने का


समय रहते मौका मिल गया।


और अपने परायों का 


आज से खेल खत्म हो गया।।


 


जय जिनेन्द्र देव की


संजय जैन (मुम्बई)


31/07/2020


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