सत्यप्रकाश पाण्डेय

मिला अपनों से.........


 


मिला अपनों से मुझे धोका


मैं भूलकर भूल नहीं पाता


करता हूँ स्मरण जब उसका


तो वो जज्बात जगा जाता


 


छल फरेब कहें या मक्कारी


या मानें जीवन की परीक्षा


कहें पूर्व जन्मों का प्रारब्ध


या मान लें ईश्वर की इच्छा


 


निकल जायेंगे यह दिन भी


हमें कभी हसाते या रुलाते   


वक्त ही बन जायेगा मरहम


निकलेंगे वो घावों को पुराते


 


न मुझे कोई भय न आशंका


मेरे मीत श्री बांकेबिहारी हैं


करेंगे जीवन नाव की रक्षा


हरि के विश्वास की बारी है


 


करेंगी मदद बरसाने वाली


मेरे प्रति श्याम को रिझाने की


फसी झंझावातों में जिन्दगी


उसे मंजिल तक ले जाने की।


 


सत्यप्रकाश पाण्डेय


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