सुनील कुमार गुप्ता

पल-पल मन न रोता


थाम लेते मन की तड़पन,


जो साथी अपना होता।


अपनत्व की चाहत को फिर,


यहाँ पल-पल न रोता।।


छोड़ मंझधार में उनको,


साथी चैन संग सोता।


अपनत्व नहीं जीवन में,


क्यों-ये मन पल-पल रोता?


वही मिले जीवन में फिर,


साथी कर्मो संग बोता।


सद्कर्म हीन जीवन में फिर,


साथी पल-पल मन रोता।।"


 


सुनील कुमार गुप्ता


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