सुनीता असीम

जख़म अपने दिखाना चाहता हूं।


तुझे मरहम बनाना चाहता हूं।


***


नमक जख्मों पे डाला है किसीने।


न उनको अब छिपाना चाहता हूँ।


***


वफ़ा मेरी जफा जिसने बताई।


सबक उसको सिखाना चाहता हूं।


***


नहीं खूबी मेरी देखी थी जिसने।


उसी से दूर जाना चाहता हूं।


***


निराशा से घिरा है आज ये मन।


कि बाहों का ठिकाना चाहता हूं


***


कहूं झूठा किसे सच्चा कहूं अब।


हकीकत आजमाना चाहता हूँ।


***


मेरे भावों से खेला है सभीने।


सभी से दूर जाना चाहता हूं।


***


सुनीता असीम


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

अखिल विश्व काव्यरंगोली परिवार में आप का स्वागत है सीधे जुड़ने हेतु सम्पर्क करें 9919256950, 9450433511